काशी में भगवान धन्वंतरि की पूजा का विशेष आध्यात्मिक और आयुर्वैदिक महत्व माना जाता है। धनतेरस के पावन पर्व पर शनिवार को कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के अवसर पर वाराणसी के सुड़िया स्थित राजवैद्य स्वर्गीय पंडित शिव कुमार शास्त्री के “धन्वंतरि निवास” में भगवान धन्वंतरि पूजनोत्सव का भव्य आयोजन संपन्न हुआ।
चांदी के सिंहासन पर विराजमान हुए आरोग्य देव
दोपहर ठीक 12 बजे मंदिर के द्वार भक्तों के लिए खोले गए। भगवान धन्वंतरि चांदी के सिंहासन पर विराजमान थे। उनके चारों हाथों में अमृत कलश, चक्र, शंख और जोंक की प्रतिमाएं अत्यंत आकर्षक रूप में शोभायमान थीं।

दिव्य औषधियों और रत्नों से सुसज्जित भोग
भगवान को दुर्लभ औषधियों और रत्नों से युक्त भोग अर्पित किया गया, जिसमें रस, स्वर्ण, हीरा, माणिक्य, पन्ना, मोती, केशर, कस्तूरी, अम्बर, अश्वगंधा, अमृता, शंखपुष्पी और मूसली जैसी दिव्य जड़ी-बूटियाँ सम्मिलित थीं।
उनके श्रृंगार के लिए हिमालय से मंगवाए गए पुष्प—आर्किड, लिली, गुलाब, ग्लेडियोलस, रजनीगंधा, तुलसी और गेंदा—का प्रयोग किया गया, जिससे पूरा मंदिर सुगंध से भर उठा।
वैदिक विधि से हुआ पूजन और आरती
पूजन एवं आरती शास्त्रोक्त विधि से वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न हुई। इस भव्य आयोजन का संचालन राजवैद्य स्व. पं. शिव कुमार शास्त्री के पुत्र—पं. रामकुमार शास्त्री, नंदकुमार शास्त्री, समीर कुमार शास्त्री, उत्पल शास्त्री, आदित्य, मिहिर और कोमल शास्त्री—ने सपरिवार किया।
मंदिर परिसर में शहनाई की मधुर धुनें गूंज रही थीं, जिनसे वातावरण औषधीय सुगंध और पुष्पों की मादक महक से पवित्र हो उठा।
भक्तों का सैलाब उमड़ा दर्शन को
शाम 5 बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ भगवान धन्वंतरि के दर्शन के लिए उमड़ पड़ी। रात 10 बजे तक देश-विदेश से आए लगभग 50,000 भक्तों ने कतारबद्ध होकर भगवान की अष्टधातु की प्रतिमा के दर्शन किए और आरोग्य व समृद्धि की कामना की।
दर्शन के उपरांत श्रद्धालुओं के चेहरों पर ऐसा संतोष झलक रहा था, मानो साक्षात धन्वंतरि स्वयं उन्हें निरोगता का आशीर्वाद दे रहे हों।

जनप्रतिनिधि और अधिकारियों ने लिया आशीर्वाद
इस अवसर पर वाराणसी के जनप्रतिनिधि, वरिष्ठ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी, तथा शहर के प्रतिष्ठित नागरिकों ने भगवान धन्वंतरि का पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
अतिथियों का स्वागत उत्पल शास्त्री ने आत्मीय भाव से किया, वहीं प्रसाद वितरण का कार्य आदित्य विक्रम शास्त्री और मिहिर विक्रम शास्त्री ने संपन्न किया।
आरोग्य और समृद्धि का प्रतीक बना पर्व
पूरे आयोजन ने श्रद्धालुओं के मन में आरोग्य, सौभाग्य और समृद्धि की भावना को और प्रगाढ़ किया। धनतेरस का यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्ध जीवन की सामूहिक मंगलकामना का प्रतीक बन गया।