सावधान ! क्या आप भी अपनी फोटो से बना रहे Ghibli? Dark Web पर लिक हो सकती है आपकी प्राइवेसी, जानिए क्या कहते हैं साइबर एक्सपर्ट

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नई दिल्ली। आजकल सोशल मीडिया पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से अपनी तस्वीरों को Ghibli Studio जैसी एनिमेशन शैली में बनाकर शेयर कर रहे हैं। सोशल मीडिया अच्छे खासे लोग कार्टून जैसे नजर आ रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है, इस तरह की फोटो बनाना आपके लिए खतरा हो सकता है। नहीं न, साइबर विशेषज्ञों के मुताबिक, यह आपके प्राइवेसी में सेंध लगा सकता है।

 


एथिकल हैकर मृत्युंजय सिंह बताते हैं कि ये AI टूल्स जितने आकर्षक दिखते हैं, उतनी ही सावधानी से इनका उपयोग करने की ज़रूरत है। अक्सर इन टूल्स की टर्म्स एंड कंडीशन्स इतनी पेंचिदा होती हैं कि आम यूजर यह समझ ही नहीं पाता कि उसकी तस्वीरों और उससे जुड़ी जानकारी का क्या होगा।


तस्वीरों के प्रोसेसिंग के दौरान केवल चेहरा ही नहीं, बल्कि लोकेशन, समय और डिवाइस जैसी जानकारी भी मेटाडाटा के रूप में सेव हो सकती है। ये सूचनाएं किसी के लिए आपकी डिजिटल पहचान की चोरी का दरवाज़ा खोल सकती हैं।

 


AI इनवर्जन अटैक का खतरा


मृत्युंजय सिंह के मुताबिक, आधुनिक AI मॉडल 'इनवर्जन अटैक' जैसी तकनीकों का उपयोग कर आपके चेहरे की मूल तस्वीर को फिर से बना सकते हैं। भले ही कंपनियां दावा करें कि वे यूजर्स की तस्वीरें सेव नहीं करतीं, लेकिन अक्सर डाटा का अंश उनके सर्वरों में रह जाता है, जिसका इस्तेमाल विज्ञापन, निगरानी या अन्य व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।


डार्क वेब पर बिकते हैं फोटो और अकाउंट !


साइबर एक्सपर्ट के मुताबिक, यदि कोई सिस्टम हैक हो जाए या उसमें तकनीकी खामी आ जाए, तो यूजर का डाटा लीक होकर डार्क वेब पर पहुंच सकता है। डार्क वेब पर ऐसे कई फोरम हैं जहां यूजर्स के सोशल मीडिया अकाउंट, तस्वीरें और अन्य डाटा को बेचा जाता है।

 


जरा सी क्रिएटिविटी पड़ सकती है भारी


मृत्युंजय सिंह बताते हैं कि क्रिएटिविटी और मनोरंजन के नाम पर लोगों को आदतन डाटा शेयर करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इन कंपनियों की शर्तें जानबूझकर जटिल और लंबी होती हैं ताकि लोग बिना पढ़े मंजूरी दे दें। यह आदत लंबे समय में खतरनाक साबित हो सकती है।


सरकारों की भूमिका अहम


विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारों को इन टूल्स पर निगरानी रखनी चाहिए और स्पष्ट डाटा गोपनीयता मानकों को लागू करना चाहिए। इसके अलावा कंपनियों को बाध्य किया जाना चाहिए कि वे सरल भाषा में यह बताएं कि यूजर का डाटा कहां और कैसे इस्तेमाल होगा।

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