25 जून 1975 की तारीख भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा मोड़ था, जब संविधान के मूल अधिकारों को ताक पर रख दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में इमरजेंसी लागू किए जाने के बाद प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा और विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया। इसी दौर में बलिया से सांसद और भविष्य के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी सरकार की कार्रवाई का शिकार बने। उन्हें दिल्ली से गिरफ्तार कर पटियाला जेल में शिफ्ट किया गया, जहां उन्होंने न सिर्फ अपने सिर के बाल मुंडवा लिए, बल्कि अपनी पहचान मानी जाने वाली दाढ़ी भी कटवा दी थी।
चंद्रशेखर का यह रूपांतर उस समय काफी चर्चा का विषय बना। आमतौर पर अपनी बड़ी-बड़ी दाढ़ी और अलग तेवरों के लिए पहचाने जाने वाले चंद्रशेखर ने जब खुद को पूरी तरह साधारण रूप में ढाल लिया, तो यह उनके व्यक्तित्व के एक नए पहलू को सामने लाया। जेल में रहते हुए उन्होंने अपने आत्मबल और अनुशासन से कई लोगों को प्रभावित किया।
पत्रकार राम बहादुर राय की स्मृतियों में चंद्रशेखर
प्रसिद्ध पत्रकार राम बहादुर राय ने अपनी पुस्तक ‘चंद्रशेखर के बगैर’ में इन घटनाओं को याद किया है। वे लिखते हैं कि उनकी चंद्रशेखर से दूसरी मुलाकात दिसंबर 1976 में हुई थी, जब उन्हें तिहाड़ जेल में रखा गया था। खुद राम बहादुर राय भी इमरजेंसी के दौरान गिरफ्तार हुए थे और करीब डेढ़ साल जेल में रहे। रिहा होने के बाद वे दिल्ली में चंद्रशेखर के रिश्तेदार उदय नारायण सिंह से मिले, जिन्होंने उन्हें बताया कि चंद्रशेखर इस समय पटियाला जेल में हैं और उन्होंने अपने बाल व दाढ़ी कटवा ली है।
इस जानकारी के बाद राय खुद उन्हें देखने के लिए तिहाड़ जेल गए। वे लिखते हैं कि 28 या 29 दिसंबर की बात रही होगी जब चंद्रशेखर को पटियाला से दिल्ली लाया गया था। उन्हें देखने आने वालों की भीड़ थी, और सब उस रूप परिवर्तन पर हैरान थे।
नीरज शेखर की आंखों से देखी इमरजेंसी की पीड़ा
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे और सांसद रह चुके नीरज शेखर ने भी इमरजेंसी से जुड़ी स्मृतियों को साझा किया है। ‘चंद्रशेखर के बगैर’ में उन्होंने लिखा कि 1975 उनके जीवन का सबसे कठिन दौर था। उस वक्त वे शिमला में थे और इमरजेंसी की खबर उन्हें लौटते समय रास्ते में मिली। वे नहीं जानते थे कि ‘इमरजेंसी’ का अर्थ क्या होता है। दिल्ली पहुंचने पर पता चला कि उनके पिता जेल भेजे जा चुके हैं।
नीरज बताते हैं कि वे तिहाड़ जेल जाकर अपने पिता से मिले। जेल में बंद चंद्रशेखर हंसते हुए सभी से मिल रहे थे और अपनों को ढांढस बंधा रहे थे। उन्होंने नीरज और बाकी परिजनों से कहा था कि वे चिंता न करें, वह जल्द ही लौट आएंगे। लेकिन यह "जल्द" 19 महीनों के बाद आया, जब उनकी रिहाई हुई।
इमरजेंसी का असर, चंद्रशेखर की आत्मिक दृढ़ता
इस पूरे घटनाक्रम ने चंद्रशेखर के राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन को एक नई परिभाषा दी। जिस प्रकार उन्होंने जेल में रहते हुए आत्मसंयम, स्पष्टता और वैचारिक मजबूती दिखाई, वह उनके राजनीतिक दर्शन का प्रमाण था। उनका बाल और दाढ़ी कटवाना केवल एक शारीरिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि एक मौन विरोध, एक आत्मबल का प्रतीक था।