कारगिल युद्ध के पहले हीरो सौरभ कालिया, कान में डाली गर्म रॉड, आंखें तक फोड़ दी, प्राइवेट पार्ट किया क्षतिग्रस्त, पाकिस्तान ने 22 दिनों तक दी थी यातना - Kargil Vijay Diwas

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बलिदान की मिसाल और बहादुरी की प्रतीक बन चुके कारगिल युद्ध को आज 26 वर्ष पूरे हो गए हैं। देशभर में आज कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन इस गौरवशाली जीत की पृष्ठभूमि में कई ऐसी कहानियां हैं जो आज भी देशवासियों की आंखें नम कर देती हैं। इन्हीं में से एक है उस युवा अफसर की, जिसने युद्ध शुरू होने से पहले ही अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया — कैप्टन सौरभ कालिया।

 

भारतीय सेना के बहादुर अफसर कैप्टन सौरभ कालिया की शहादत कारगिल युद्ध की सबसे पहली थी। मात्र 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर कर दिए। वह दिसंबर 1998 में इंडियन मिलिट्री अकैडमी (IMA) से पास आउट हुए थे और फरवरी 1999 में उनकी नियुक्ति 4 जाट रेजीमेंट के साथ कारगिल में हुई थी। यह नियुक्ति उनके जीवन की अंतिम तैनाती साबित हुई।

 

 

दुश्मन देश ने पीठ में घोंपा था छुरा

 

सर्दियों में जब सेना ऊंचाई पर स्थित चौकियों से अस्थायी रूप से नीचे उतर आती है, उसी दौरान पाकिस्तान ने भारत की ओर पीठ में छुरा घोंपने जैसी साजिश रच दी। भारतीय सेना को इसका अंदाजा तब हुआ जब एक स्थानीय चरवाहे, ताशी नामग्याल, ने 3 मई 1999 को हथियारों से लैस घुसपैठियों की मौजूदगी की जानकारी दी।

 

इस सूचना की पुष्टि के लिए कैप्टन सौरभ कालिया को उनकी टीम — अर्जुन राम, भीका राम, भंवरलाल बगरिया, मूला राम और नरेश सिंह के साथ पेट्रोलिंग पर भेजा गया। मुठभेड़ और क्रूर कैद पेट्रोलिंग के दौरान कैप्टन सौरभ की टीम का सामना नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तानी सैनिकों से हुआ। मुठभेड़ घंटों तक चली, लेकिन सीमित संसाधनों और गोला-बारूद के अभाव में अंततः वे पकड़े गए। इसके बाद पाकिस्तान ने 22 दिनों तक जो किया, वह मानवता को शर्मसार कर देने वाला था।

 

22 दिनों तक दी थी यातना

 

कैप्टन कालिया और उनके साथियों को 22 दिनों तक जिस तरह की शारीरिक यातनाएं दी गईं, वह आज भी सुनने वालों की रूह कंपा देती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके कानों में गर्म रॉड डाली गई, नाक और होंठ काटे गए, आंखें फोड़ दी गईं, यहां तक कि उनके निजी अंगों तक को क्षतिग्रस्त किया गया। अंत में उन्हें गोली मार दी गई।

 

 

कटी हुई भौंह से हुई थी पहचान

 

जब सौरभ कालिया का शव भारत लौटाया गया, तब उनके परिवार ने उन्हें पहचानने के लिए उनकी भौंहों को देखा। उनके भाई वैभव कालिया ने बताया कि पूरा चेहरा विकृत हो चुका था, केवल भौंहें ऐसी थीं जिससे उनकी पहचान संभव हुई। आज तक कालिया परिवार यह मांग कर रहा है कि पाकिस्तान के इस अमानवीय व्यवहार के लिए उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सजा दी जाए। यह न केवल जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन था, बल्कि मानवता के खिलाफ भी गंभीर अपराध था।

 

कारगिल की कीमत और शौर्य की विरासत

 

कारगिल युद्ध में भारत ने 527 वीर सपूत खोए और 1,363 जवान घायल हुए। युद्ध में शहीद हुए अधिकांश जवान बेहद युवा और हाल ही में सेना में भर्ती हुए थे। कैप्टन सौरभ कालिया की कहानी न केवल उस युद्ध की त्रासदी को दर्शाती है, बल्कि उनके जैसे वीरों की वजह से ही आज देश हर साल विजय दिवस गर्व से मना रहा है।

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