वाराणसी। काशी को ज्ञान और मंदिरों की नगरी के रूप में विशेष पहचान प्राप्त है। यहां स्थित सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में स्थित वाग्देवी मंदिर उत्तर भारत में अपनी तरह का इकलौता मंदिर है। देवी वाग्देवी (सरस्वती) को विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इस मंदिर की स्थापत्य कला इसे और भी विशिष्ट बनाती है। परमार शैली में निर्मित यह मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर से बनी मां वाग्देवी की मूर्ति प्रतिष्ठापित है। यहां प्रतिदिन प्रातः और सायंकाल आरती और पूजन किया जाता है। मंदिर के पुजारी सच्चिदानंद पांडेय के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जो सुबह से शाम तक चलती रहती है। इस दिन बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शिक्षक और श्रद्धालु यहां देवी सरस्वती का आशीर्वाद लेने आते हैं।
कब हुई थी स्थापना
वाग्देवी मंदिर की स्थापना की संकल्पना सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति वेंकटाचलम और पूर्व काशीनरेश डॉ. विभूति नारायण सिंह ने की थी। 8 अप्रैल 1988 को इस मंदिर के निर्माण की अनुमति मिली और 18 फरवरी 1989 को इसकी नींव रखी गई। 27 मई 1998 को मंदिर बनकर तैयार हुआ और उसी वर्ष इसका भव्य उद्घाटन किया गया।
मंदिर के उद्घाटन समारोह में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन निर्माण और पर्यटन मंत्री कलराज मिश्र, कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती और तत्कालीन कुलपति मंडन मिश्र उपस्थित थे। इसके बाद सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को इस मंदिर की जिम्मेदारी सौंप दी गई।
राजा भोज के समय मध्य प्रदेश में भी था ऐसा मंदिर
मध्य प्रदेश के धार क्षेत्र में राजा भोज के समय भी एक वाग्देवी मंदिर था, लेकिन वह खंडित हो गया। इसके बाद सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति वेंकटाचलम ने काशी में नए वाग्देवी मंदिर की संकल्पना की और यह भव्य मंदिर अस्तित्व में आया।
द्वादश सरस्वती विग्रह: उत्तर भारत में अनोखी विशेषता
इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां द्वादश सरस्वती (बारह स्वरूपों) के विग्रह भी स्थापित हैं, जो उत्तर भारत में अन्यत्र कहीं नहीं मिलते। इन द्वादश स्वरूपों के नाम इस प्रकार हैं—
1. भारती देवी
2. सुमंगला देवी
3. विद्याधरी देवी
4. तुम्बरी देवी
5. सारंगी देवी
6. विजया देवी
7. जया देवी
8. सरस्वती देवी
9. कमलाक्षी देवी
10. शारदा देवी
11. श्री देवी
12. महामाया देवी
शंकराचार्य के सुझाव पर बनी योजना
1998 में नेपाल यात्रा के बाद जब कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती और शंकर विजेन्द्र सरस्वती महाराज काशी आए, तो सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में उनका स्वागत हुआ। सभा की अध्यक्षता पूर्व काशीनरेश डॉ. विभूति नारायण सिंह कर रहे थे।
इस दौरान शंकराचार्य ने कहा कि काशी में एक ऐसा स्थान होना चाहिए जहां मां सरस्वती का सानिध्य मिले। उन्होंने काशीनरेश से आग्रह किया कि यदि यहां वाग्देवी का मंदिर बन जाए तो यह बहुत अच्छा होगा। इसी के परिणामस्वरूप 1998 में वाग्देवी मंदिर का निर्माण पूरा हुआ और उसका भव्य लोकार्पण किया गया।
सरस्वती कंठाभरण महामंडप और भव्य निर्माण
मंदिर के समक्ष महामंडप (प्रवेशद्वार) स्थित है, जिसे 'सरस्वती कंठाभरण' कहा जाता है। इस मंदिर में वाग्देवी के अलावा आदि शंकराचार्य और अन्य शंकराचार्यों की तस्वीरें भी स्थापित हैं।
इस मंदिर के निर्माण में लगभग 60 लाख रुपये का खर्च आया था। इसकी अद्वितीय स्थापत्य कला इसे काशी के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में शामिल करती है।
विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए विशेष आकर्षण
यह मंदिर सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित यह मंदिर ज्ञान, शिक्षा और संस्कृत परंपरा का प्रतीक है। वसंत पंचमी के दिन यहां विशेष आयोजन होते हैं, जहां हजारों श्रद्धालु, छात्र और विद्वान मां वाग्देवी की आराधना करते हैं।