थाने तो आप सबने बहुत देखे होंगे और थानेदार का रौब भी देखा होगा। लेकिन धार्मिक नगरी काशी की अलग ही मान्यता है। यहां के कोतवाली थाने में बाबा कालभैरव अपनी कुर्सी पर विराजमान होकर व्यवस्था चलाते हैं। यहां टेबल भी है कुर्सी भी है टोपी भी है और रुल भी है जो दंड का निर्धारण करता है।
यूपी में एक ऐसा भी थाना है, जहां का थानेदार या कोई अधिकारी थानेदार की कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं करता। जी हां, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक ऐसा थाना है, जहां थानेदार की कुर्सी पर स्वयं बाबा कालभैरव स्वयं विराजते हैं। वाराणसी के कोतवाली थाने (Varanasi Kotwali) में थानेदार की कुर्सी पर बाबा कालभैरव सारी प्रशासनिक व्यवस्था देखते हैं। मान्यता है कि यहां के कोतवाल स्वयं बाबा कालभैरव ही हैं।
यहां के थाना प्रभारी बाबा के बगल में अपनी कुर्सी लगाकर बैठते हैं। यह व्यवस्था कब से चली आ रही है किसी को इसकी जानकारी नहीं है। यहां कोई भी थानेदार तैनात होकर आया, अपनी कुर्सी पर नहीं बैठा। कोतवाल की कुर्सी पर हमेशा बाबा कालभैरव विराजते हैं। मान्यता है कि वहां आने जाने वालों पर बाबा अपनी नजर स्वयं बनाए रखते हैं, इसलिए उन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। बाबा की इतनी मान्यता है कि कोतवाली थाने की पुलिस भी सुबह बिना उनकी पूजा किए कोई भी काम शुरू नहीं करती।
Varanasi Kotwali का लेखा-जोखा भी बाबा के पास
मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ ने पूरी काशी नगरी का लेखा जोखा की जिम्मेदारी बाबा कालभैरव को सौंपी है। यहां तक कि बाबा की अनुमति के बिना प्रवेश नहीं करता। कहा जाता है कि इस शहर में कोई भी पुलिस अधिकारी नियुक्ति के बाद बिना बाबा के दरबार में हाजिरी लगाए अपनी ड्यूटी ज्वाइन नहीं करता।
स्थानीय लोगों के मुताबिक, उन्होंने अभी तक किसी भी थानेदार को कोतवाल की कुर्सी पर बैठे नहीं देखा। थाने (Varanasi Kotwali) के प्रभारी निरीक्षक बगल में कुर्सी लगाकर ही बैठते हैं। हालांकि इस परम्परा के अनुसार, कब और किसने की, इसकी जानकारी लिखित रूप से कहीं भी मौजूद नहीं है। माना जाता है कि सन 1715 में पेशवा बाजीराव ने थाने से करीब 500 मीटर की दूरी पर कालभैरव मंदिर बनवाया था। इसके बाद से ही यह परम्परा शुरू हुई। यहां आने वाले प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी सबसे पहले बाबा का दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
Varanasi Kotwali में आज भी चलता है बाबा का राज
कोतवाली थाने (Varanasi Kotwali) के प्रभारी निरीक्षक आशीष मिश्रा ने बताया कि यहां आज भी बाबा का ही राज चलता है। हम सभी केवल एक माध्यम हैं। बिना उनकी आज्ञा के एक पत्ता तक नहीं हिलता। यहां बाबा की कुर्सी के साथ उनका मेज, उनका डंडा और थानेदार की टोपी भी है और रुल भी है, जो दंड का निर्धारण करता है।
यहां कोई भी उच्च अधिकारी नहीं करते निरीक्षण
पुलिस सूत्रों की मानें तो इस थाने में कोई भी उच्च अधिकारी कभी निरीक्षण करने नहीं आता। यहां की देख-रेख स्वयं बाबा ही करते हैं। दशकों पहले एक अधिकारी ने यहां का निरीक्षण करने की चेष्टा की थी, उसके अगले ही दिन उसका ट्रांसफर हो गया। उसके बाद से आज तक किसी ने यहां का निरीक्षण करने की हिम्मत नहीं जुटाई। यहां आते ज़रूर हैं लोग, लेकिन निरीक्षण नहीं करते।
दिन में चार बार होती है बाबा की आरती
बता दें कि Varanasi Kotwali थाने के निकट बाबा कालभैरव मंदिर में हर दिन चार बार आरती होती है। जिसमें रात के समय होने वाली आरती सबसे प्रमुख होती है। आरती से पहले बाबा को स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है। खास बात यह है कि आरती के समय पुजारी के अलावा मंदिर के अंदर जाने की आज्ञा किसी को नहीं होती है। बाबा को सरसों का तेल चढ़ता है। साथ ही एक अखंड दीप बाबा के पास हमेशा जलता रहता है।