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काशी में पंचकोशी यात्रा: 85 किलोमीटर पैदल चलते हैं श्रद्धालु, महाश्मशान से करते हैं शुभारंभ, काम, क्रोध और अहंकार से मिलती है मुक्ति, जानिए क्या है परम्परा

वाराणसी। महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व काशी की ऐतिहासिक पंचकोशी यात्रा की शुरुआत मंगलवार शाम को हुई। हजारों श्रद्धालुओं ने मणिकर्णिका स्थित चक्रपुष्करणी कुंड में पवित्र स्नान कर इस आध्यात्मिक यात्रा का संकल्प लिया। पूरी रात चलते हुए भक्तगण काशी की परिक्रमा करेंगे और अगले दिन बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाकर अपनी यात्रा को पूर्ण करेंगे। यह यात्रा लगभग 85 किलोमीटर लंबी होती है, जिसे श्रद्धालु पैदल तय करते हैं।

 


मन और आत्मा की शुद्धि का माध्यम है पंचकोशी यात्रा


पंडित जयेंद्र नाथ दुबे के अनुसार, पंचकोशी यात्रा काशी की एक प्राचीन परंपरा है, जिसका उल्लेख धर्मशास्त्रों में भी किया गया है। यह यात्रा आत्मशुद्धि का एक माध्यम मानी जाती है। मान्यता है कि इस यात्रा को करने से व्यक्ति के जीवन के सभी दुष्प्रभाव समाप्त हो जाते हैं और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। काशीवासी जीवन में कम से कम एक बार इस यात्रा को अवश्य करते हैं, जिससे वे आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होते हैं।

 


श्रद्धालुओं के अनुसार, यह यात्रा केवल पैरों की साधना नहीं, बल्कि मन के विकारों—काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार—से मुक्ति पाने का एक मार्ग है। यात्रा के दौरान श्रद्धालु भगवान शिव के विभिन्न मंदिरों में दर्शन करते हैं और पूरे मार्ग में 'हर-हर महादेव' के जयघोष से वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं।

 


मणिकर्णिका कुंड से होती है यात्रा की शुरुआत


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पंचकोशी यात्रा का शुभारंभ काशी के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक मणिकर्णिका कुंड से होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस कुंड की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु के चक्र से हुई थी और उन्होंने यहां 60 हजार वर्षों तक तपस्या की थी। यही कारण है कि इस कुंड में स्नान करने को अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।

 


एक अन्य मान्यता के अनुसार, माता पार्वती के कान की मणि इसी कुंड में गिरी थी, जिसके कारण इसे 'मणिकर्णिका कुंड' कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती ने भी इस कुंड में स्नान किया था, जिससे यह स्थान और भी अधिक पवित्र हो गया। पंचकोशी यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु इस कुंड में स्नान कर यात्रा की शुरुआत करते हैं।


रातभर चलने वाली यात्रा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व


श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा में पूरी रात चलते हैं और अगले दिन सुबह इस यात्रा को पूरा करते हैं। यह यात्रा धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसमें भाग लेने वाले श्रद्धालु शिवालयों और विभिन्न मंदिरों में अक्षत अर्पित कर भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।


श्रद्धालु अपने पैरों में सरसों का तेल लगाते हैं ताकि यात्रा के दौरान दर्द और थकान से बचा जा सके। वे अपने साथ अक्षत (चावल) और वस्त्र लेकर चलते हैं, जिन्हें वे विभिन्न मंदिरों में अर्पित करते हैं। पूरे रास्ते में श्रद्धालुओं के लिए जलपान, भोजन और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था स्थानीय निवासियों और समाजसेवी संगठनों द्वारा की जाती है।

 


काशी के घाटों और गलियों में भक्ति का माहौल


पंचकोशी यात्रा के दौरान काशी के घाटों और गलियों में भक्ति का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। हजारों श्रद्धालु श्रद्धा और भक्ति के साथ इस यात्रा में शामिल होते हैं। काशीवासियों द्वारा जगह-जगह जल, चाय, प्रसाद और भोजन वितरण किया जाता है, जिससे यह यात्रा न केवल आध्यात्मिक बल्कि सामाजिक समर्पण और सहयोग का प्रतीक बन जाती है।

 


पुलिस प्रशासन की कड़ी निगरानी


श्रद्धालुओं की सुरक्षा और यात्रा के सुचारू संचालन के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा विशेष इंतजाम किए गए हैं। पंचकोशी मार्ग पर पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है ताकि किसी भी प्रकार की अव्यवस्था न हो। साथ ही, ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से श्रद्धालुओं को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं।


महाशिवरात्रि पर यात्रा की पूर्णाहुति


पंचकोशी यात्रा की समाप्ति महाशिवरात्रि के दिन बाबा विश्वनाथ के दर्शन और पूजन के साथ होती है। श्रद्धालु अपनी यात्रा पूरी कर महादेव के चरणों में शीश नवाते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह यात्रा न केवल आस्था और विश्वास का प्रतीक है, बल्कि यह भक्तों को आत्मिक शांति और संतुष्टि भी प्रदान करती है।

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