वाराणसी। आध्यात्मिकता, संस्कृति और संगीत से सराबोर काशी एक बार फिर उत्सव की छटा में नहाई हुई है। “कण-कण में काशी, रस-रस में बनारस” की थीम पर आधारित काशी गंगा महोत्सव 2025 का भव्य शुभारंभ शनिवार को राजघाट स्थित गंगा तट पर हुआ। इस अवसर पर प्रदेश के स्टांप एवं न्यायालय पंजीयन शुल्क राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविन्द्र जायसवाल ने पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया। उनके साथ जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार, नगर आयुक्त हिमांशु नागपाल, जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्य और संयुक्त निदेशक पर्यटन दिनेश सिंह भी मंच पर मौजूद रहे।

दीपों की पंक्तियों से आलोकित गंगा तट पर जब उद्घाटन की औपचारिकता पूरी हुई, तो पूरा वातावरण भक्ति, संगीत और आनंद से भर उठा। उद्घाटन के बाद मंत्री रविन्द्र जायसवाल ने कहा, “काशी की ऐसी अद्भुत महिमा है कि यहां साल के 365 दिन कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है। यहां का हर क्षण, हर श्वास, हर राग स्वयं में एक पर्व है।” उन्होंने बताया कि गंगा महोत्सव अब केवल वाराणसी का आयोजन नहीं रह गया है, बल्कि यह विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति की पहचान बन चुका है।
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मंत्री ने कहा कि यह उत्सव न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि यह स्थानीय और उभरते कलाकारों के लिए एक बड़ा मंच भी है। यहां उन्हें अपनी कला का प्रदर्शन करने और राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने का अवसर मिलता है। जायसवाल ने बताया कि चार दिवसीय गंगा महोत्सव के बाद मनाई जाने वाली देव दीपावली अब पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो चुकी है। “आज काशी का हर घाट, हर गली, हर मन दीपों से जगमगाने को तैयार है, और गंगा तट से निकलती संगीत की धुनें पूरे भारत की आत्मा को स्पर्श करती हैं,” उन्होंने कहा।
महोत्सव का शुभारंभ पंडित माता प्रसाद मिश्र और पंडित रविशंकर मिश्र की युगल कथक नृत्य प्रस्तुति से हुआ, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। शास्त्रीय लय और भाव के सम्मिश्रण से सजे इस नृत्य ने गंगा की पवित्रता और काशी की आध्यात्मिक ऊर्जा को सजीव कर दिया। उद्घाटन सत्र के बाद संगीत, नृत्य और लोककला की विविध प्रस्तुतियों ने मंच को साकार कर दिया।

कार्यक्रम आयोजकों के अनुसार, इस वर्ष महोत्सव में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों के साथ-साथ स्थानीय कलाकारों को भी समान अवसर दिया गया है। संगीत की सभी विधाओं — शास्त्रीय, लोक, सुगम और आधुनिक — को एक मंच पर समेटने की कोशिश की गई है।
गंगा की लहरों पर झिलमिलाते दीप, आसमान में गूंजती घंटियों की ध्वनि और मंच पर बहता सुर-संगीत — इन सबके संग काशी एक बार फिर जगमगा उठी है। जैसे ही रात गहराती जा रही थी, वैसे ही राजघाट का हर दीप और हर स्वर मिलकर यह संदेश दे रहा था कि काशी में न कभी अंधकार होता है, न मौन — यहां हर क्षण जीवन और उत्सव का पर्व है।