वाराणसी। सूतक काल में मोरारी बापू के रामकथा कहने और बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने पर विवाद छिड़ गया है। दरअसल, 11 जून को उनकी पत्नी का निधन हुआ था, जिसके चलते सनातन परंपरा का हवाला देते हुए कुछ हिंदू संगठनों के लोगों ने उनका विरोध किया। विरोध का कारण यह बताया गया कि परिजनों के निधन के बाद 'सूतक' की अवधि मानी जाती है, जिसके दौरान धार्मिक आयोजन, पूजा-पाठ और मंदिर दर्शन वर्जित माने जाते हैं।
मोरारी बापू हालांकि इस परंपरा से असहमति जताते हुए काशी पहुंचे और शनिवार को बाबा विश्वनाथ के दर्शन-पूजन भी किए। उनके दर्शन के दौरान वे लगभग आधे घंटे मंदिर परिसर में रहे, जहां मंदिर प्रशासन की ओर से उन्हें अंगवस्त्र और प्रसाद भेंट किया गया। दर्शन के उपरांत उन्होंने रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में रामकथा की शुरुआत की, जिसकी थीम इस बार "ऑपरेशन सिंदूर" से प्रेरित बताई गई है। यह उनकी 958वीं रामकथा है, जो 22 जून तक सिगरा क्षेत्र स्थित कन्वेंशन सेंटर में चलेगी, जहां तीन हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है।
हालांकि मोरारी बापू के इस आयोजन को लेकर धार्मिक संत समाज और सनातन परंपरा में विश्वास रखने वाले लोगों में आक्रोश है। शनिवार शाम को विरोध स्वरूप गोदौलिया चौराहे पर लोगों ने उनका पुतला दहन कर नाराजगी जताई।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मोरारी बापू ने कहा, "हम वैष्णव परंपरा के अनुयायी हैं। जो लोग नित्य पूजा-पाठ करते हैं, उन पर सूतक का नियम नहीं लागू होता। भगवान का भजन करना आत्मिक शांति देता है, इसमें विवाद की कोई आवश्यकता नहीं।"
लेकिन संत समाज इस तर्क से सहमत नहीं है। अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "सूतक काल में कथा कहना अति निंदनीय है। धर्म से ऊपर उठकर केवल अर्थ की प्राप्ति के लिए ऐसा कृत्य किया गया है। यह पूरी तरह से धर्म और समाज के साथ विश्वासघात है।"
उन्होंने बापू की पूर्व की कुछ गतिविधियों को भी निशाने पर लेते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने इससे पहले चिता की अग्नि के समक्ष विवाह के फेरे डलवाए थे, जो परंपराओं के विरुद्ध है। व्यासपीठ पर बैठकर 'अल्लाह' और 'मौला' का जिक्र करना भी सनातन मर्यादा के अनुकूल नहीं है।
स्वामी जितेंद्रानंद ने मोरारी बापू से यह स्पष्ट करने की मांग की कि वह किस श्रेणी में आते हैं, क्योंकि ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मचारी और राजा को ही सूतक नहीं लगता है। उन्होंने चेताया कि संन्यास परंपरा में ही जीवित रहते हुए पिंडदान की परंपरा होती है, इसलिए मोरारी बापू को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वे संन्यासी हैं या नहीं।
संत समिति ने यह भी कहा कि धर्म को जनकल्याण का माध्यम बनाए रखना चाहिए, न कि व्यक्तिगत शोहरत और आर्थिक लाभ का जरिया। मोरारी बापू यदि धर्म को व्यवसाय में बदलेंगे, तो यह समाज के लिए घातक होगा।