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काशी में एक कुंआ है ऐसा, परछाई न दिखी, समझ लीजिए ‘मौत पक्की’

वैसे तो बनारस (Varanasi) शहर मंदिरों और घाटों के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि काशी में मरने वाले को मुक्ति मिल जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस शहर की तंग गलियों में एक रहस्यमयी कुआं है जो मौत का आईना दिखाता है। आइए, जानते हैं कुएं से कैसे होती है मौत की भविष्यवाणी…

 

हम बात कर रहे हैं चंद्रकूप की। यह कुआं वाराणसी (Varanasi) में चौक के निकट मां सिद्धेश्वरी के मंदिर में बना हुआ है। कहा जाता है कि यह गंगा से भी प्राचीन है। मूल रूप से यह एक कुंड था जिसे बाद में ढककर कुएं के आकार का बना दिया गया। यह कुंड आज चंद्रकूप के नाम से जाना जाता है। स्कंदपुराण के काशी खंड में भी इसका उल्लेख है।

 

 

काशी खण्ड में चंद्रेश्वर लिंग एवं चंद्रकूप के महात्म्य का उल्लेख है। पौराणिक कथा के अनुसार स्वयं चन्द्रमा ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए काशी में अपने नाम के शिवलिंग को स्थापित कर अनेकों वर्षों तक तपस्या करते रहे एवं इसी तपस्या के दौरान भगवान चंद्र ने अमृतोद कूप की स्थापना की। इसके जल को पीने से मनुष्य अज्ञानता से छुटकारा पा जाता है। भगवान चंद्र के तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चंद्रमा को जल बीज औषधि एवं ब्राह्मणों का राजा बनाया एवं चंद्रमा के एक कला (अंश) को अपने मस्तक पर धारण किया। मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही आँगन के मध्य में चंद्र कूप स्थित है।

 

 

कहा जाता है कि एक बार चंद्र देव को उनके ससुर ने क्षय होने का श्राप दे दिया था। इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने ही काशी में चंद्रेश्वर शिवलिंग की स्थापना की और साथ ही एक तालाब भी बनवाया। उन्होंने इस सरोवर के जल से 1 लाख वर्ष तक चंद्रेश्वर शिवलिंग का अभिषेक किया और अंत में श्राप से मुक्ति पाई।

 

 

मान्यता यह है कि यदि कोई व्यक्ति इस कुएं के जल में देखे और अपनी परछाई देखे तो उसकी आयु लंबी होती है। लेकिन अगर किसी को कुएं के पानी में अपनी परछाई न दिखे तो उस व्यक्ति की जल्द ही मौत हो सकती है। लोगों का मानना है कि ऐसे व्यक्ति को अपनी मृत्यु के समय और स्थिति का उसी क्षण आभास हो जाता है। मंदिर के पुजारियों और उनके आसपास के लोगों के अनुसार ऐसी कई कहानियां हैं जब किसी व्यक्ति ने यहां अपनी परछाई नहीं देखी और फिर कुछ ही महीनों में उसकी मौत हो गई।

 

 

एक और बात जो इस कुएं को खास बनाती है, वह है वाराणसी (Varanasi) के मणिकर्णिका घाट से इसका संबंध। पुजारी कहते हैं, इस कुएं के भीतर एक सुरंग है जो सीधे मणिकर्णिका घाट से निकलती है। चंद्रकूप का महान श्मशान घाट से जुड़ाव इसके रहस्य को और बढ़ा देता है। पुराने समय में, तीर्थयात्री इस चंद्रकूप की मदद से ही काशी में वापस रहने या लौटने का फैसला करते थे। जिन्हें जल में अपनी परछाई नहीं दिखती वे काशी में मोक्ष प्राप्ति के लिए यहीं रुकते थे। इसलिए अगर आप कभी बनारस जाएं तो चंद्रकूप के दर्शन जरूर करें। हम उम्मीद करते हैं कि कुएं के पानी में आपको अपनी परछाई जरूर दिखेगी।

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