Success Story: मेहनतकश व्यक्ति को सफल होने के लिए कभी किसी गॉडफादर की आवश्यकता नहीं होती। वह अपने हुनर और मेहनत के बदौलत सफलता की ऊंचाइयों को छूता जाता है। इस तथ्य को साबित कर दिखाया है, देवरिया की रहने वाली आयुषी तिवारी ने। आयुषी को पिछले दिनों वाराणसी स्थित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति ने पत्रकारिता में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया।
एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी आयुषी ने अपनी मेहनत की बदौलत सफलता की ऊंचाइयों को हासिल (Success Story) किया है। वर्तमान में वह महत्मा गांधी काशी विद्यापीठ से परास्नातक पूरी कर नोएडा के एक नामचीन मीडिया हाउस में कार्यरत हैं। आयुषी ने अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने माता-पिता व गुरुजनों को दिया है।
आयुषी ने पढ़ाई के दौरान अपने संघर्षों (Success Story) के बारे में जो बताया, वह काफी हैरान कर देने वाला है। आयुषी ने बताया कि वह मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोटा गई थी। इसके लिए कोचिंग में डेढ़ लाख रुपए फीस भी भरे गए थे, लेकिन किस कारणवश पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई।
Success Story: जहां नौकरी नहीं की, उसी संस्थान के प्रबंधक के नाम से मिला सम्मान
न्यूज़ 18 नेटवर्क में बतौर ट्रेनी जर्नलिस्ट आयुषी का यह पहला स्टेप है। बताया कि उनका पहला सिलेक्शन अमर उजाला में हुआ था। लेकिन इसकी सूचना उन्हें देर से मिली। अब वह दिल्ली आ चुकी हैं। इत्तेफाक की बात है कि जिस अमर उजाला में सेलेक्शन के बाद भी वह नौकरी नहीं कर रही हैं, उसी अमर उजाला के प्रबंधक के नाम से जारी पदक अतुल माहेश्वरी स्वर्ण पदक से महामहिम सम्मानित कर चुकी हैं।
उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद की रहने वाली आयुषी के पिता अजय व्यवसायी हैं, मां किरण हाउस वाइफ हैं। एक छोटी बहन और छोटा भाई है। दोनों पढ़ाई करते हैं। तीन भाई बहनों में आयुषी सबसे बड़ी हैं। आयुषी ने बताया कि महामहिम के हाथों सम्मानित होने की सूचना वायरल होते ही बधाइयों का दौर शुरू हो गया। शुभचिंतकों के दिनभर में दर्जनों फोन आने लगे।
परिजनों और गुरुओं को होता है गर्व
बताया कि पहले तो कई दिनों तक कुछ समझ ही नहीं आया। ऐसी कोई बड़ी बात (Success Story) वाली फीलिंग तो नहीं आ रही थी। अब फैमिली और स्कूल कॉलेज के लोग गर्व करते हैं। गर्व से कहते है ‘मेरी बेटी है मैंने पढ़ाया है।’
कोटा में आयुषी ने जब एडमिशन लिया, लाख- डेढ़ लाख खर्च हो चुके थे। उस दौरान किराए के कमरे में रहना हुआ। दिक्कतें भी काफी आईं। मध्यमवर्गीय परिवार होने के कारण आर्थिक तंगी भी होने लगी। हालत यह हो गई कि कुछ महीनों बाद फिर से लौटने पड़ा।
‘शिव’ से मिलने की चाह खींच लाई बनारस
घर लौटने के बाद लोगों ने तरह तरह के राय दिए। किसी ने दिल्ली जाकर एयर होस्टेस, तो किसी ने होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने की राय दी। लेकिन वो एक कहावत है न कि समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। दिल्ली तो आना ही था, लेकिन उसे पहले बाबा विश्वनाथ की शरण मे जाकर उनका सानिध्य भी तो पाना था। नतीजन, देवरिया से बनारस तक सफर शुरू हुआ।
आयुषी ने वाराणसी में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से पत्रकारिता में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया। पांच साल बाबा विश्वनाथ की शरण में शिक्षा दीक्षा ग्रहण की। बाबा की नगरी में आने के बाद अब मन का डर समाप्त हो चुका था। इसी दौरान बनारस से दिल्ली तक का भी सफर (Success Story) शुरू हुआ। न्यूज़ 18 नेटवर्क में कैंपस सेलेक्शन हुआ। फिर क्या था, अभिभावकों के साथ हमसफ़र एक्सप्रेस से दिल्ली का सफर।
आयुषी ने बताया कि अभी तो अपने हिस्से में कामयाबी का एक टुकड़ा ही आया है। अभी कई और टुकड़े हैं, जिन्हें हासिल करना है। जिसका भरोसा उन्हें खुद है। अभी कई बार ट्रेन से उतरकर उन्हें थोड़ा असहज होना है और फिर सहज होकर कहना है, “सब ठीक ही रहा।”