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जौनपुर: आस्था का प्रमुख केंद्र है केराकत का 157 वर्ष पुराना मां काली का मंदिर: जयपुर से 6 महीने में बैलगाड़ी से लाई गई थीं मूर्तियां, रोचक है इतिहास

केराकत (जौनपुर): नगर के घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित मां काली का ऐतिहासिक मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। 157 साल पुराने इस मंदिर का इतिहास और निर्माण कहानी भक्तों को प्रेरणा और विश्वास से भर देती है। स्थानीय लोगों के अलावा दूर-दराज से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।

 


मां काली का स्वप्न और मंदिर निर्माण की प्रेरणा


यह बात 1867 की है, जब राय साहब परिवार के सदस्य और मां काली के अनन्य भक्त बाबू राम दयाकृष्ण जी को एक रात स्वप्न में मां काली ने दर्शन दिए और मंदिर निर्माण की प्रेरणा दी। जमींदार परिवार से होने के कारण धन की कमी न थी। उन्होंने अपने घर के बगल में भव्य मंदिर निर्माण का दृढ़ निश्चय किया और मां काली की शांत स्वरूप वाली मूर्ति बनवाने का संकल्प लिया।

 


जयपुर से लाए मूर्तियां


दयाकृष्ण जी स्वयं मूर्तिकार और संगीतकार थे। वे अपने साथ दस साथियों को लेकर जयपुर गए। वहां कसौटी पत्थर की खोज कर सबसे अच्छे मूर्तिकार से मां काली की मूर्ति तैयार करवाई। इसके अलावा, 39 अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी बनवाईं, जिनमें हनुमान जी और श्री चित्रगुप्त की प्रतिमाएं शामिल थीं।


चूंकि उस समय परिवहन के साधन सीमित थे, उन्होंने दो बैलगाड़ियां खरीदीं और मूर्तियों को छह महीने में सड़क मार्ग से केराकत पहुंचाया। इस बीच मंदिर का निर्माण कार्य पहले से ही शुरू हो चुका था।

 


मंदिर की अनोखी विशेषताएं


मंदिर की एक विशेषता इसकी संरचना है। जितनी ऊंचाई यह मंदिर जमीन के ऊपर है, उतनी ही गहराई इसके नींव में है। वर्ष 1868 में चैत मास की नवमी को मां काली की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भव्य समारोह के साथ संपन्न हुई।


श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र


मंदिर की शताब्दी 1968 में राय परिवार ने बड़े आयोजन के साथ मनाई थी। हर वर्ष आयोजित होने वाले श्रृंगार महोत्सव में यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है। इसके अलावा नवरात्रि एवं हिंदू त्योहारों पर यहां आस्था का रेला उमड़ता है। मां काली का यह मंदिर इतिहास, वास्तुकला, और श्रद्धा का अनुपम संगम है, जो हर भक्त को आध्यात्मिक ऊर्जा और प्रेरणा से भर देता है।

 

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