जन्माष्टमी विशेष: इस्लाम के सिद्धांतों को त्याग श्रीकृष्ण भक्ति में डूबे रसखान, बालरूप में कन्हैया ने दिए दर्शन, बदल गया जीवन - Shri Krishna Janmashtami Special

रसखान, जिनका असली नाम सैयद इब्राहिम था, हिंदी साहित्य के अद्वितीय कवि थे, जिन्होंने कृष्ण भक्ति के माध्यम से अपनी साहित्यिक पहचान बनाई। उनकी कविताओं में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और भक्ति की गहरी छाप देखने को मिलती है। रसखान का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उनका जीवनकाल भगवान कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह से डूबा हुआ था। इस कहानी में, हम रसखान के जीवन के उस महत्वपूर्ण पहलू को जानेंगे जब उन्हें भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त हुए।

 


प्रारंभिक जीवन और परिवेश


रसखान का जन्म दिल्ली के निकट एक प्रतिष्ठित मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता सैयद गाजी मुगलों के दरबार में एक उच्च पद पर थे। रसखान का असली नाम सैयद इब्राहिम था, लेकिन अपने साहित्यिक नाम "रसखान" से वे अधिक प्रसिद्ध हुए। प्रारंभ में रसखान का झुकाव इस्लाम और उसके सिद्धांतों की ओर था, और वे कुरान के गहरे ज्ञाता थे। लेकिन जीवन के किसी मोड़ पर उनका परिचय भगवान कृष्ण के अद्भुत व्यक्तित्व से हुआ और उनके जीवन का मार्ग ही बदल गया।

 


प्रेम की अनुभूति


कहा जाता है कि रसखान का पहला परिचय भगवान कृष्ण से उनके एक मित्र के माध्यम से हुआ था, जो गहरे कृष्ण भक्त थे। कृष्ण की बाल लीलाओं और रासलीला की कहानियों ने रसखान को इतना प्रभावित किया कि वे कृष्ण के प्रति एक अनन्य प्रेम और भक्ति में बंध गए। धीरे-धीरे, कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति इतनी गहरी हो गई कि वे अपने धर्म, परिवार और सामाजिक संबंधों को भी पीछे छोड़ते गए। 

 


मथुरा की ओर यात्रा


अपने कृष्ण प्रेम की अनुभूति को और अधिक गहनता से अनुभव करने के लिए रसखान ने मथुरा की यात्रा की। मथुरा, जो भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है, रसखान के लिए एक तीर्थस्थल बन गया। वहां पहुंचकर उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया। 

 


कहा जाता है कि रसखान घंटों तक मथुरा की गलियों में घूमते रहते और श्रीकृष्ण के बाल रूप का ध्यान करते। उनके मन में एक ही इच्छा थी—श्रीकृष्ण का साक्षात्कार। वे नित्य मथुरा के यमुना तट पर जाकर कृष्ण का ध्यान करते और अपने हृदय में कृष्ण की छवि को बसाने का प्रयास करते।


भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन


रसखान के श्रीकृष्ण के प्रति इस अनन्य प्रेम और भक्ति ने आखिरकार उन्हें वह अवसर प्रदान किया, जिसका वे बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। एक दिन, जब रसखान गोकुल में थे, वे नंदगांव के समीप यमुना किनारे बैठे हुए कृष्ण का ध्यान कर रहे थे। उसी समय उन्हें भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हुए। 


कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने अपने बाल रूप में रसखान के सामने प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए। रसखान इस अद्वितीय अनुभव से स्तब्ध रह गए। उन्होंने अपने सामने वही नटखट, प्यारे कान्हा को देखा जिनकी छवि वे अपने हृदय में बसाए हुए थे। कृष्ण ने रसखान से कहा, "तुम्हारी भक्ति ने मुझे प्रसन्न किया है, और इसलिए मैं तुम्हें दर्शन देने आया हूं।"


रसखान की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। उन्होंने भगवान कृष्ण के चरणों में सिर झुका दिया और उन्हें प्रणाम किया। श्रीकृष्ण ने रसखान को उठाकर अपने हृदय से लगाया। इस अनुभव ने रसखान के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। 

 


रसखान का साहित्य


श्रीकृष्ण के दर्शन के बाद, रसखान की कविताओं में भक्ति की धारा और भी प्रबल हो गई। उनकी कविताओं में कृष्ण की बाल लीलाओं, राधा-कृष्ण के प्रेम, और ब्रज की सुंदरता का अद्वितीय वर्णन मिलता है। रसखान की कविता "मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वालन" इस बात का प्रतीक है कि वे कृष्ण के प्रति कितनी अनन्य भक्ति रखते थे। 


उनकी कविताओं में कृष्ण के प्रति प्रेम का ऐसा अद्भुत और अनूठा वर्णन मिलता है जो किसी भी पाठक को भावविभोर कर सकता है। रसखान ने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना समय व्यतीत किया। 


जीवन का अंतिम समय


रसखान ने अपने जीवन के अंतिम समय तक मथुरा और वृंदावन के तीर्थस्थलों में भक्ति और साधना की। उन्होंने संसार के मोह-माया से पूरी तरह से दूर होकर श्रीकृष्ण के चरणों में अपने जीवन का हर पल अर्पित कर दिया। 

 


रसखान की मृत्यु के बाद भी उनकी कविताओं में श्रीकृष्ण के प्रति उनका अनन्य प्रेम और भक्ति जीवित है। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि सच्ची भक्ति के माध्यम से भगवान के दर्शन प्राप्त किए जा सकते हैं, चाहे वह व्यक्ति किसी भी धर्म या समुदाय का हो। 


रसखान की कहानी केवल एक कवि की कहानी नहीं है, बल्कि यह भक्ति, प्रेम और समर्पण की अद्वितीय गाथा है। रसखान ने श्रीकृष्ण के दर्शन के माध्यम से यह सिद्ध किया कि भगवान के प्रति सच्ची भक्ति किसी भी धर्म, जाति, या संप्रदाय की सीमा नहीं जानती। उनका जीवन और साहित्य हमें यह सिखाते हैं कि प्रेम और भक्ति की शक्ति के सामने हर बाधा छोटी पड़ जाती है। 


रसखान का जीवन इस बात का प्रमाण है कि जब भक्ति सच्ची होती है, तो भगवान स्वयं भक्त के सामने प्रकट हो जाते हैं। श्रीकृष्ण के प्रति रसखान का प्रेम और उनकी भक्ति हमें यह संदेश देती है कि यदि हमारा हृदय सच्चा और निर्मल हो, तो भगवान की प्राप्ति अवश्य होती है।

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