भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान में भी फिल्म धुरंधर को लेकर तीखी चर्चाएं और विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों की कमाई कर चुकी यह फिल्म अब एक ऐसे अंधेरे सच की ओर इशारा कर रही है, जिसे लेकर कई देशों की खुफिया एजेंसियां वर्षों तक अलर्ट रहीं। फिल्म के रिलीज के बाद लगातार नए-नए किस्से सामने आ रहे हैं, जिन्होंने दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या परदे पर दिखाई गई कहानी हकीकत से प्रेरित है।
दुबई की चमक-दमक, ऊंची इमारतें और ग्लोबल फाइनेंस का चमचमाता चेहरा अक्सर एक स्याह दुनिया को छुपा लेता है। इसी चमक के पीछे वह अंडरवर्ल्ड फाइनेंशियल सिस्टम फल-फूल रहा था, जहां हवाला और शैडो बैंकिंग के जरिए अरबों रुपये इधर-उधर किए जाते थे। इसी सिस्टम के केंद्र में थे जावेद खानानी और अल्ताफ खानानी दो भाई, जिन्हें पाकिस्तान के सबसे बड़े मनी लॉन्ड्रिंग नेटवर्क का मास्टरमाइंड माना जाता है।
फिल्म धुरंधर में दिखाए गए काल्पनिक किरदारों के पीछे की असली कहानी इससे कहीं ज्यादा खतरनाक और चौंकाने वाली है। खानानी ब्रदर्स का नेटवर्क सिर्फ अवैध धन को ठिकाने लगाने तक सीमित नहीं था, बल्कि भारत की आर्थिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने और आतंकी संगठनों की फंडिंग में भी इसकी अहम भूमिका रही। यह पूरा सिस्टम कराची से लेकर दुबई, कनाडा और अफ्रीका तक फैला हुआ था और कथित तौर पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की छत्रछाया में काम करता था।
खानानी एंड कालिया इंटरनेशनल नाम से खड़ी की थी कंपनी
जावेद और अल्ताफ खानानी ने “खानानी एंड कालिया इंटरनेशनल” (KKI) नाम से एक कंपनी खड़ी की थी। बाद में अमेरिकी वित्त विभाग ने इस कंपनी को “महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आपराधिक संगठन” करार देते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया। खुफिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, KKI का नेटवर्क कराची, दुबई, टोरंटो और पूर्वी अफ्रीका तक फैला हुआ था। अमेरिकी और भारतीय एजेंसियों का दावा रहा है कि यह नेटवर्क लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और दाऊद इब्राहिम की डी-कंपनी जैसे आतंकी संगठनों के लिए वित्तीय रीढ़ की तरह काम करता था।
हवाला के जरिए नकली करेंसी, ड्रग मनी और आतंकी फंडिंग को औपचारिक बैंकिंग सिस्टम से दूर रखकर घुमाया जाता था। इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा पर पड़ा। लंबे समय तक नकली भारतीय करेंसी नोट (FICN) की समस्या इसी नेटवर्क से जुड़ी बताई जाती रही।
2016 में इमारत से गिरकर हुई जावेद खानानी की मौत
जावेद खानानी को इस नेटवर्क का दिमाग माना जाता था। वह बेहद कम सार्वजनिक रूप से दिखाई देता था और एक साधारण कारोबारी की तरह जीवन जीता था। 2000 के दशक के मध्य तक वह सिर्फ एक करेंसी डीलर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मनी लॉन्ड्रिंग सिस्टम का अहम खिलाड़ी बन चुका था। साल 2016 में कराची में एक इमारत से गिरकर उसकी रहस्यमय मौत हो गई। दिलचस्प संयोग यह रहा कि उसी समय भारत में नोटबंदी लागू हुई थी, जिसने हवाला और नकली नोटों के नेटवर्क की कमर तोड़ दी। माना जाता है कि नोटबंदी ने खानानी नेटवर्क की रीढ़ भी तोड़ दी थी। जावेद की मौत आज भी कई सवाल खड़े करती है।
तीन साल बाद हुई अल्ताफ खानानी की रिहाई
अल्ताफ खानानी का जन्म 1961 में हुआ था और उसे भी दुनिया के कुख्यात मनी लॉन्ड्ररों में गिना जाता है। उसने पाकिस्तान से लेकर मध्य पूर्व, यूरोप, उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक हवाला नेटवर्क खड़ा किया। 2016 में उसे अमेरिका में मनी लॉन्ड्रिंग साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया गया और बाद में पाकिस्तान प्रत्यर्पित किया गया। तीन साल जेल में रहने के बाद 2020 में उसकी रिहाई हुई।
फिल्म धुरंधर ने इन किरदारों को भले ही सिनेमाई अंदाज में पेश किया हो, लेकिन असल जिंदगी में खानानी ब्रदर्स की कहानी कहीं ज्यादा भयावह, जटिल और वास्तविक है। एक ऐसी कहानी, जो सिनेमा से बाहर निकलकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति, आतंक और अर्थव्यवस्था के खतरनाक गठजोड़ को सामने लाती है।