नई दिल्ली। भारतीय संगीत उद्योग के इतिहास में कुछ तारीखें ऐसी हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। एक ऐसी ही तारीख है 12 अगस्त 1997। यह वो मनहूस दिन था, जब संगीत की दुनिया के बेताज बादशाह, 'कैसेट किंग' गुलशन कुमार की मुंबई के एक मंदिर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी; यह बॉलीवुड, अंडरवर्ल्ड और संगीत की दुनिया के उस स्याह गठजोड़ का सबसे क्रूर चेहरा था, जिसने 90 के दशक में इंडस्ट्री को हिलाकर रख दिया था।
यह कहानी है जूस की दुकान से संगीत का साम्राज्य खड़ा करने वाले एक शख़्स की, उसकी बेमिसाल कामयाबी की, और उस कामयाबी की कीमत चुकाने की, जो उसने अपनी जान देकर अदा की।
अध्याय 1: दरियागंज से 'कैसेट किंग' बनने का सफ़र
गुलशन कुमार का उदय किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं है। दिल्ली के एक पंजाबी परिवार में जन्मे गुलशन कुमार दुआ के पिता चंद्रभान दुआ की दरियागंज में फलों के जूस की एक छोटी सी दुकान थी। गुलशन ने अपने पिता के साथ काम करना शुरू किया, लेकिन उनके सपने बड़े थे। उन्होंने देखा कि संगीत के शौकीनों को गानों के लिए महंगे LPs (लॉन्ग-प्लेइंग रिकॉर्ड) खरीदने पड़ते हैं। उन्होंने इस मौके को भांपा और सस्ते ऑडियो कैसेट का कारोबार शुरू किया।
11 जुलाई 1983 को उन्होंने 'सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड' नाम की कंपनी की स्थापना की, जिसे आज दुनिया T-Series के नाम से जानती है। कई लोग आज भी पूछते हैं कि T-Series में 'T' का क्या मतलब है? इसका जवाब गुलशन कुमार की गहरी धार्मिक आस्था में छिपा है। 'T' का मतलब है 'त्रिशूल', भगवान शिव का आयुध, जिनके वे अनन्य भक्त थे।
शुरुआती दिनों में टी-सीरीज़ ने भक्ति संगीत और पुराने गानों के कवर वर्ज़न जारी किए। उनकी रणनीति सरल थी: कम कीमत पर अच्छी क्वालिटी का संगीत आम आदमी तक पहुँचाना। 7 रुपये की कैसेट ने संगीत बाज़ार में क्रांति ला दी।
कंपनी को पहला बड़ा ब्रेक 1988 में मिला। आमिर खान और जूही चावला की डेब्यू फिल्म 'क़यामत से क़यामत तक' के संगीत राइट्स टी-सीरीज़ के पास थे। इस फिल्म के 80 लाख से ज़्यादा कैसेट बिके, जो एक रिकॉर्ड था। लेकिन असली धमाका होना अभी बाकी था।
साल 1990 में फिल्म 'आशिकी' रिलीज़ हुई। इस फिल्म के संगीत ने न केवल बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, बल्कि इसने बॉलीवुड को कई नए सितारे भी दिए। नदीम-श्रवण की जोड़ी रातों-रात सेंसेशन बन गई, और कुमार सानू को 'नए किशोर कुमार' का दर्जा मिल गया। अनुराधा पौडवाल, जिन्हें गुलशन कुमार प्रमोट कर रहे थे, 'नई लता' के रूप में उभर कर सामने आईं।
90 का दशक सही मायनों में T-Series का दशक था। दरियागंज के एक लड़के ने 'सारेगामा' (तब HMV) और 'टिप्स' जैसी स्थापित कंपनियों को पछाड़कर म्यूजिक इंडस्ट्री की सूरत हमेशा के लिए बदल दी थी। 1997 तक, T-Series का भारतीय संगीत बाज़ार के लगभग 65% हिस्से पर कब्ज़ा हो चुका था। हर बड़ी फिल्म का संगीत टी-सीरीज़ के पास था। गुलशन कुमार अब सिर्फ एक व्यापारी नहीं, बल्कि 'कैसेट किंग' बन चुके थे।
लेकिन उनकी इस आक्रामक व्यापार नीति के आलोचक भी थे। कई पुराने संगीतकारों का मानना था कि 80 और 90 के दशक में हिंदी संगीत के पतन के पीछे टी-सीरीज़ का बड़ा हाथ था। सस्ते रीमिक्स और पश्चिमी पॉप की नक़ल ने संगीत की मौलिकता को नुकसान पहुँचाया। हालाँकि, गुलशन कुमार के लिए यह संगीत का लोकतंत्रीकरण था।

अध्याय 2: बॉलीवुड, दाऊद और वो ख़ौफ़ का दौर
90 का दशक जहाँ T-Series के लिए सुनहरा था, वहीं मुंबई (तब बॉम्बे) के लिए यह आतंक और अंडरवर्ल्ड के ख़ौफ़ का दौर था। दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील और अबु सलेम जैसे नाम फिल्म इंडस्ट्री पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे थे। रियल एस्टेट सेक्टर चरमरा चुका था और अब अंडरवर्ल्ड की नज़र बॉलीवुड के 'ग्लैमर' और 'पैसे' पर थी।
फिल्म निर्माताओं को धमकाना, हफ्ता (वसूली) मांगना और फिल्मों में अपने पसंदीदा कलाकारों को काम दिलवाना आम हो गया था। जो कोई इनकार करता, उसकी सज़ा मौत होती थी।
गुलशन कुमार की हत्या इस सिलसिले की पहली घटना नहीं थी। इसकी पटकथा 7 जून 1994 को ही लिखी जा चुकी थी, जब फिल्म प्रोड्यूसर जावेद रियाज़ सिद्दीकी की हत्या कर दी गई। सिद्दीकी 'तू विष मैं अमृत' नाम की एक फिल्म बना रहे थे। कहा जाता है कि दाऊद इब्राहिम के कहने पर उन्होंने पाकिस्तानी एक्ट्रेस ज़ेबा अख्तर को फिल्म में लिया था। लेकिन बाद में सिद्दीकी ने ज़ेबा को फिल्म से हटाने का फैसला कर लिया। यह बात दाऊद को इतनी नागवार गुज़री कि सिद्दीकी को गोलियों से भून दिया गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सिद्दीकी की हत्या के बाद ही गुलशन कुमार को भी अंडरवर्ल्ड से धमकियां मिलनी शुरू हो गई थीं। उनकी जान को खतरा देखते हुए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें एक बॉडीगार्ड भी मुहैया कराया था।
मुंबई में ख़ौफ़ का माहौल था। 'गुप्त' और 'मोहरा' जैसी सुपरहिट फिल्मों के निर्देशक राजीव राय पर भी जानलेवा हमला हुआ। कहा जाता है कि उन पर अबु सलेम ने गोलियां चलवाई थीं। मशहूर निर्माता-निर्देशक सुभाष घई को भी धमकियां मिलीं। सलेम ने उन पर भी हमले की योजना बनाई थी, लेकिन पुलिस ने समय रहते उसके गुर्गों को पकड़ लिया।
यह स्पष्ट था कि अंडरवर्ल्ड अब बॉलीवुड के सबसे बड़े नामों को निशाना बनाकर अपना दबदबा कायम करना चाहता था। और उस वक़्त गुलशन कुमार से बड़ा नाम कोई नहीं था।

अध्याय 3: हत्या की साज़िश: नदीम का ग़ुस्सा और सलेम की कॉल
गुलशन कुमार की हत्या के पीछे दो प्रमुख वजहें सामने आईं: अंडरवर्ल्ड की वसूली और संगीत की दुनिया की आंतरिक प्रतिद्वंद्विता।
पहली वजह: नदीम सैफी की नाराज़गी
नदीम-श्रवण की जोड़ी को 'आशिकी' से स्टार बनाने वाले गुलशन कुमार ही थे। लेकिन 1997 तक दोनों के रिश्तों में खटास आ चुकी थी। संगीतकार नदीम सैफी (नदीम-श्रवण फेम) ने 'हाय अजनबी' नाम से एक प्राइवेट एल्बम लॉन्च की। इस एल्बम के कुछ गाने नदीम ने खुद गाए थे।
नदीम चाहता था कि T-Series इस एल्बम के राइट्स खरीदे और इसे ज़ोर-शोर से प्रमोट करे। गुलशन कुमार इसके लिए तैयार नहीं थे। गुलशन कुमार के भाई किशन कुमार ने बाद में अदालत में बयान दिया कि गुलशन ने नदीम से साफ कहा था कि उनकी आवाज़ अच्छी नहीं है और यह एल्बम नहीं चलेगी।

किसी तरह बात बनी, T-Series ने राइट्स खरीदे,