बाढ़ में डूबा मणिकर्णिका घाट: छत पर जल रही चिताएं, घंटों इंतजार में शव लेकर बैठे परिजन, ढाई घंटे तक करना पड़ रहा इंतज़ार

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वाराणसी। काशी का मोक्ष स्थल मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट इन दिनों बाढ़ की चपेट में आ गया है। गंगा के रौद्र रूप ने घाट को निगल लिया है और अब अंतिम संस्कार छतों और गलियों में हो रहा है। रोजाना 100 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार करने वाला यह घाट अब खुद अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।


मणिकर्णिका घाट पर अब रूफटॉप श्मशान बन चुका है। छत पर जल रही चिताओं के बीच परिजन अंतिम संस्कार की प्रतीक्षा में बैठे हैं। हालात इतने खराब हैं कि एक साथ अधिकतम 5-6 शव ही जलाए जा पा रहे हैं। बाकी परिजनों को अपने मृत प्रियजनों के शवों के साथ 2 से ढाई घंटे तक अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। छतों पर जहां शव जल रहे हैं, वहां खड़ा रहना तक मुश्किल हो गया है। गर्मी और चिता की लपटों के बीच लोग अपने कफन में लिपटे परिजनों को लेकर बैठे हैं, आंखें लगातार उन चिताओं को ताकती हैं, जिनके बुझने के बाद ही उन्हें मौका मिलेगा।

 


हरिश्चंद्र घाट भी जलमग्न, गलियों में हो रहा संस्कार


मणिकर्णिका के साथ-साथ वाराणसी का दूसरा प्रमुख घाट, हरिश्चंद्र घाट भी गंगा की उफनती लहरों में समा गया है। वहां अब अंतिम संस्कार की प्रक्रिया आसपास की गलियों में की जा रही है। यहां पर भी लंबी वेटिंग लगी हुई है। ओम चौधरी, जो घाट की व्यवस्था से जुड़े हैं, बताते हैं कि एक शव के दाह संस्कार में अब तीन घंटे तक का इंतजार हो रहा है। हर दिन मुश्किल से 10 शव जल पाए जा रहे हैं। बाकी परिजन मायूस होकर गलियों में शव लेकर बैठ रहे हैं।


डूबे घाटों से व्यवस्था चरमराई, हजारों दुकानदारों को हटना पड़ा


गंगा के बढ़ते जलस्तर के कारण वाराणसी के 84 घाटों में से अधिकांश जलमग्न हो चुके हैं। इसके चलते लगभग 10 हजार दुकानों को शिफ्ट करना पड़ा है। घाटों के किनारे जीवनयापन करने वाले नाविकों की भी रोजी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है। अनुमान है कि लगभग 3 हजार नाविकों की आजीविका पर इस बाढ़ ने सीधा प्रहार किया है। गंगा में नाव संचालन पर रोक लगा दी गई है।


बाढ़ का पानी वरुणा नदी के सहारे 30 हजार घरों में घुसा


वाराणसी में गंगा के साथ वरुणा नदी का जलस्तर भी गंगा के साथ-साथ तेजी से बढ़ रहा है। अब तक बाढ़ का पानी 30 हजार घरों तक पहुंच चुका है। प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी है, लेकिन जिनके लिए घाटों पर अंतिम संस्कार कराना धार्मिक आस्था से जुड़ा है, वे किसी भी हालत में वहां से हटने को तैयार नहीं।


‘यह शिव की ही लीला है’, कहकर सब्र कर रहे लोग


बिहार से आए एक व्यक्ति ने कहा, "यह मां की अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार काशी में हो। हम घाट तक नहीं पहुंच सके, इसलिए मणिकर्णिका गली में बैठकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।" वहीं एक अन्य परिजन ने बताया कि अंतिम संस्कार अभी नहीं हुआ, पर वे श्रद्धांजलि देकर लौट रहे हैं क्योंकि वहां रुकना मुश्किल हो गया है। बावजूद इसके कोई शिकायत नहीं कर रहा। सब मानते हैं कि यह शिव की लीला है और इसे सहन करना ही पड़ेगा।


गली में जलती चिताएं, तपता माहौल


जहां जगह बची है, वहीं शव रखे जा रहे हैं। जिन स्थानों पर चिताएं जल रही हैं, उनके ठीक बीच में अर्थियां भी टिकी हुई हैं। ऐसे माहौल में खड़ा रहना भी मुश्किल है। ताप इतना है कि दो मिनट में जीवित शरीर भी झुलसने लगता है। डोम परिवार के सदस्य राजेश चौधरी बताते हैं कि सामान्य दिनों में 100 शव जलाने की क्षमता रखने वाला घाट अब बमुश्किल 30-35 अंतिम संस्कार ही कर पा रहा है।

 


लकड़ियां गीली, नावों पर रखनी पड़ रही हैं


बारिश की मार से लकड़ियां भीग रही हैं, जिससे दाह संस्कार में देरी हो रही है। राजेश बताते हैं कि लकड़ियों को सूखा रखने के लिए उन्हें दुकानों में या नावों पर रखकर पालिथीन से ढका जा रहा है। पहले जहां दो घंटे में एक शव जल जाता था, अब उसमें तीन से चार घंटे लग रहे हैं।


बढ़ती समस्या, घटती व्यवस्था


हरिश्चंद्र घाट की गलियों में संस्कार करवा रहे अनिल मौर्य कहते हैं कि संस्कार के लिए उन्हें 7 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं, लेकिन बैठने तक की जगह नहीं है। ऐसे में हर वह व्यक्ति जो काशी में मोक्ष की उम्मीद लेकर आया है, वह अब व्यवस्थागत असहायता से जूझ रहा है।


कुल मिलाकर गंगा की बाढ़ ने काशी के घाटों को अस्त-व्यस्त कर दिया है। धार्मिक आस्था और परंपराओं के केंद्र माने जाने वाले ये घाट अब जल समाधि की ओर हैं। जहां पहले शांति और मुक्ति का भाव था, वहां अब इंतजार और असमर्थता की तस्वीर उभर कर सामने आ रही है।

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