दिल्ली में 10 नवंबर को लाल किला के पास हुई कार ब्लास्ट घटना की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, वैसे-वैसे सुरक्षा एजेंसियों के सामने एक चौंकाने वाला नेटवर्क सामने आता गया। जांच में पता चला कि इस पूरे मॉड्यूल की धुरी लखनऊ की रहने वाली डॉ. शाहीन शाहिद थी, जो करीब एक दशक से पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ी हुई थी। नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक शाहीन ने 2015 में पहली बार जैश से संपर्क किया और अगले ही साल संगठन की सक्रिय सदस्य बन गई।
एजेंसियों के अनुसार शाहीन ने करीब एक वर्ष तक संवेदनशील जानकारियां जैश तक पहुंचाईं। अब सुरक्षा तंत्र इस बात की पड़ताल में जुटा है कि इन 10 सालों में शाहीन किन-किन इलाकों में रही, किससे मिलती रही और उसका नेटवर्क कितनी दूर तक फैला हुआ था। शुरुआती रिपोर्ट बताती हैं कि यह कोई साधारण मॉड्यूल नहीं, बल्कि 'व्हाइट कॉलर टेरर नेटवर्क' था, जिसमें उच्च शिक्षित लोग वर्षों से गुपचुप तरीके से सक्रिय थे।
मीडिया द्वारा की शुरुआती पड़ताल में सामने आया कि शाहीन के भीतर कट्टरपंथ की प्रक्रिया अचानक नहीं, बल्कि धीरे-धीरे विकसित हुई थी। 2021 में जब एक रिश्तेदार ने उससे परिवार, नौकरी और बच्चों को छोड़ने के फैसले पर सवाल किया तो उसने कहा था— “अपने लिए बहुत जी लिया। अब कौम का कर्ज उतारने का समय है। जो करूंगी, उस पर फख्र करोगे।”
CIK की छापेमारी और 'महिला डॉक्टर लिंक'
जम्मू-कश्मीर के CIK (काउंटर इंटेलिजेंस कश्मीर) ने भी इस मामले में बड़ी कार्रवाई की। अनंतनाग की टीम ने नौगाम केस से जुड़े सुरागों के आधार पर मलकनाग इलाके में डॉ. खालिद अजीज टाक के घर पर देर रात छापेमारी की। यहां उन्हें हरियाणा मूल की महिला डॉक्टर प्रियंका शर्मा मिलीं, जो अक्टूबर 2023 से किराए पर रह रही थी और वर्तमान में GMC अनंतनाग के जनरल मेडिसिन विभाग में फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रही हैं।
यह पहला मौका है जब जांच एजेंसियां मेडिकल क्षेत्र के भीतर इतने बड़े पैमाने पर कट्टरपंथी गतिविधियों का जाल पकड़ने में सफल हुई हैं। इसी वजह से इसे ‘डॉक्टर मॉड्यूल’ नाम दिया गया है।
ATS ने पांच डॉक्टरों को दबोचा
ब्लास्ट की तफ्तीश में जैसे-जैसे परतें खुलीं, उत्तर प्रदेश का कनेक्शन और मजबूत होता गया। पहले सिमी, फिर इंडियन मुजाहिदीन, उसके बाद PFI—हर बार यूपी से किसी न किसी रूप में तार जुड़ते रहे थे। लेकिन यह मामला पहली बार है जब इतने अधिक पढ़े-लिखे, प्रोफेशनल डॉक्टरों के आतंक की राह पर चलने की पुष्टि हुई है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस और एटीएस ने एक-एक करके पाँच डॉक्टरों को गिरफ्तार किया। इस नेटवर्क की मास्टरमाइंड शाहीन लखनऊ से पकड़ी गई, जबकि उसका भाई डॉ. परवेज भी एजेंसियों की पूछताछ में महत्वपूर्ण जानकारियां दे रहा है।
फरीदाबाद क्राइम ब्रांच भी अल फलाह यूनिवर्सिटी पहुँच चुकी है और वहां पढ़ने वाले कुछ संदिग्ध छात्रों व कर्मचारियों की भूमिका की जांच कर रही है।
उमर की 13 दिन की रहस्यमयी गतिविधियां
दिल्ली कार ब्लास्ट में शामिल आतंकी उमर की गतिविधियां भी एजेंसियों के रडार पर हैं। अधिकारियों के अनुसार उमर ने घटना से पहले दिल्ली के कई महत्वपूर्ण इलाकों की रेकी की थी। फुटेज में वह दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे, अकबर रोड और बाराखंबा रोड पर घूमता दिखाई दिया।
31 अक्टूबर से 8 नवंबर तक उमर अचानक गायब रहा। इसके अलावा 30 अक्टूबर को ब्लास्ट में इस्तेमाल हुई I20 कार को अल फलाह यूनिवर्सिटी की तरफ जाते हुए भी देखा गया।
‘ऑपरेशन हमदर्द’ और महिला मॉड्यूल का खुलासा
गिरफ्तार हुए डॉ. मुजम्मिल की डायरी से ‘ऑपरेशन हमदर्द’ नामक एक साजिश का पता चला है, जिसमें मुस्लिम लड़कियों को हमलों के लिए प्रशिक्षित करने की योजना थी। इस संवेदनशील जिम्मेदारी की कमान शाहीन को दी गई थी। अनुमान है कि इस मॉड्यूल में 25 से 30 लोग सक्रिय रूप से जुड़े थे, जिनका नेटवर्क जम्मू-कश्मीर से लेकर फरीदाबाद तक फैला हुआ है।
शाहीन बनी ‘मैडम सर्जन’, विदेश भागने की कोशिश
सूत्रों के मुताबिक जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी शाहीन को ‘मैडम सर्जन’ कहकर बुलाते थे। ब्लास्ट के बाद उसने विदेश भागने की तैयारी की थी और अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में पासपोर्ट के लिए आवेदन भी किया था, लेकिन पुलिस वेरिफिकेशन में देरी उसके प्लान के विफल होने का कारण बना।
कट्टरपंथ की शुरुआत: 2010 का मोड़
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर में उसके साथ काम कर चुके एक कर्मचारी ने बताया कि 2010 के आसपास वह विदेश में रहने वाले भारतीय मूल के एक डॉक्टर के संपर्क में आई थी। वही उसे धार्मिक सामग्री, वीडियो और दस्तावेज भेजता था। इसके बाद ही उसने हिजाब पहनना शुरू किया और विदेश जाने की जिद करने लगी।
NIA को पता चला है कि 2022 में इस मॉड्यूल से जुड़े डॉक्टर तुर्की में ISI के हैंडलर अबु उकाशा से भी मिले थे। यह मुलाकात 1 मार्च से 18 मार्च 2022 के बीच हुई थी, जिससे इस पूरे नेटवर्क की अंतरराष्ट्रीय जड़ें और गहरी होती जा रही हैं।
यह मामला देश के सुरक्षा ढांचे के सामने एक नई चुनौती खड़ी करता है—क्या कट्टरपंथ का नया स्वरूप अब पेशेवर और उच्च शिक्षित वर्गों पर केंद्रित हो गया है? जांच जारी है, पर संकेत बेहद गंभीर हैं।