नई दिल्ली। 14 अगस्त का दिन भारत के इतिहास में सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक गहरा और दर्दनाक अध्याय है। यह वही दिन है जब 1947 में आज़ादी के साथ ही देश का विभाजन हुआ और भारत के दो टुकड़े कर एक नए राष्ट्र ‘पाकिस्तान’ का जन्म हुआ। इस विभाजन ने सिर्फ भौगोलिक सीमाएं नहीं बदलीं, बल्कि दिलों, परिवारों और रिश्तों को भी चीरकर रख दिया। यह घाव ऐसा है जो भारत मां के सीने पर सदियों तक ताज़ा रहेगा और आने वाली पीढ़ियां इसे याद कर आंसू बहाती रहेंगी।
इतिहासकार मानते हैं कि भारत के दो टुकड़े करने की योजना अंग्रेजों ने बड़े सोचे-समझे तरीके से बनाई थी। हालांकि, इसमें कुछ भारतीय नेताओं की राजनीतिक भूमिका भी थी। लगभग 200 वर्षों की गुलामी के बाद जब आज़ादी के सपने पूरे होने वाले थे, तब ही विभाजन का यह दर्दनाक निर्णय सामने आया। 14 अगस्त 1947 की आधी रात को जहां भारत ने स्वतंत्रता का शंखनाद किया, वहीं पाकिस्तान को एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप में जन्म दिया गया। इससे पहले तक पाकिस्तान का कोई अस्तित्व नहीं था, लेकिन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने जाते-जाते अपनी साजिश का यह सबसे बड़ा परिणाम भारत के सामने रख दिया।
लाखों लोगों का विस्थापन और मौत का सैलाब
विभाजन के साथ ही लाखों लोग अपने घर-बार छोड़ने को मजबूर हो गए। धर्म और मज़हब के आधार पर अचानक से तय हुई नई सीमाओं ने रातों-रात करोड़ों भारतीयों को शरणार्थी बना दिया। लाखों लोग भूख-प्यास से मर गए, तो लाखों हिंसक दंगों और कत्लेआम का शिकार हो गए। रेलवे के डिब्बे लाशों से भरकर आते थे, गांव जलकर राख हो गए, और न जाने कितने बच्चे अनाथ हो गए। यह सिर्फ भूगोल का बंटवारा नहीं था, बल्कि करोड़ों भावनाओं, यादों और सपनों का बंटवारा था।
बंगाल और पंजाब का दर्द, लाखों ने एक झटके में छोड़ा वतन
विभाजन ने न सिर्फ देश को दो भागों में बांटा, बल्कि बंगाल और पंजाब जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध प्रदेशों को भी चीर दिया। बंगाल का पूर्वी हिस्सा पाकिस्तान में शामिल हुआ, जो बाद में 1971 में बांग्लादेश बना। वहीं, पंजाब का पश्चिमी हिस्सा पाकिस्तान का अंग बना। इन दोनों प्रांतों के लाखों परिवारों को एक झटके में अपना वतन छोड़ना पड़ा।
आजादी का सशर्त सौदा
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह आज़ादी हमें बिना शर्त नहीं मिली। इसमें विभाजन की शर्त शामिल थी, और यह सौदा ब्रिटिश हुकूमत की राजनीतिक चालों का हिस्सा था। आज़ादी की कीमत के रूप में हमें पाकिस्तान का उदय और अनगिनत बलिदान झेलने पड़े। विभाजन का यह अध्याय सिर्फ भारत-पाकिस्तान के रिश्तों का नहीं, बल्कि मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: याद और चेतावनी
14 अगस्त का दिन अब "विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" के रूप में भी जाना जाता है, ताकि इस त्रासदी को याद रखा जा सके और आने वाली पीढ़ियां समझ सकें कि नफरत, धार्मिक भेदभाव और सत्ता की भूख किस तरह लाखों निर्दोष जिंदगियों को तबाह कर सकती है। यह दिन हमें यह चेतावनी भी देता है कि राजनीतिक लाभ के लिए समाज में फूट डालने के परिणाम कितने विनाशकारी हो सकते हैं।
घाव जो आज भी हरे हैं
भले ही आज विभाजन को 75 से अधिक वर्ष हो गए हों, लेकिन इसका दर्द आज भी महसूस किया जाता है। भारत-पाकिस्तान के बीच समय-समय पर तनाव, सीमा पर गोलाबारी, और आपसी अविश्वास उसी इतिहास की देन हैं। विभाजन के जख्म हर पीढ़ी के दिल में अपनी जगह बनाए रखते हैं और यह कहानी आज भी करोड़ों परिवारों की स्मृतियों में जीवित है।
14 अगस्त सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक ऐसे दौर की याद है जिसने लाखों लोगों के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। यह इतिहास का वह सबक है, जिसे भूलना आसान नहीं और माफ करना शायद नामुमकिन। विभाजन की यह कहानी हमें बार-बार यही कहती है—एकजुट रहना ही किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत है, और विभाजन की आग से सिर्फ राख ही बचती है।