पंचायत चुनाव में भाजपा का मास्टरप्लान, बना ली विपक्ष को शिकस्त देने की रणनीति, सहयोगी दलों की बगावत बनी चुनौती 

https://admin.thefrontfaceindia.in/uploads/812718370_panchayt_chunav.jpg

यूपी में अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर सियासी जमीन अभी से तपने लगी है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल मानते हुए पूरी ताकत झोंकने की तैयारी कर ली है। वहीं, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगी दलों का अलग राह पकड़ना भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। बावजूद इसके पार्टी ने आठ माह पहले ही रणनीति बनाकर चुनावी मोर्चा संभाल लिया है।


भाजपा प्रदेश महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह ने हाल ही में एक कार्यक्रम में स्पष्ट किया कि पार्टी ने पंचायत चुनाव की तैयारियों का खाका खींच लिया है। इसके तहत परिसीमन और मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया अलग-अलग चलाई जाएगी। मंडल और जिला स्तर पर विशेष समितियों का गठन कर लिया गया है, जिनका मुख्य उद्देश्य है—वार्ड परिसीमन को पार्टी के लिए लाभकारी बनाना।


भाजपा की रणनीति है कि परिसीमन इस तरह हो कि वार्डों में भाजपा समर्थक मतदाताओं की संख्या अधिक हो जाए। इसके लिए जिला स्तर पर चार और मंडल स्तर पर तीन सदस्यीय कमेटियां गठित की गई हैं। ये टीमें पंचायत राज अधिकारियों के साथ समन्वय बनाकर परिसीमन प्रक्रिया में मदद करेंगी, ताकि भाजपा प्रत्याशियों की जीत की संभावनाएं बढ़ाई जा सकें।


मतदाता सूची में 10 से 20 प्रतिशत नाम जोड़ने का लक्ष्य


भाजपा की योजना केवल परिसीमन तक सीमित नहीं है। मतदाता सूची के पुनरीक्षण को भी प्राथमिकता दी गई है। हर बूथ पर 10 से 20 फीसदी नए मतदाताओं को जोड़ने और फर्जी नाम हटाने का अभियान चलाया जाएगा। खास ध्यान इस बात पर रहेगा कि आरएसएस और भाजपा समर्थकों के नाम सूची में सम्मिलित हों। इसके लिए जिला और मंडल स्तर पर समितियों का गठन किया जा चुका है और प्रदेश स्तर से निगरानी रखी जा रही है।


ग्राम प्रधान तक चुनावी रणनीति में शामिल


भले ही ग्राम प्रधान का चुनाव राजनीतिक दलों के चिन्हों पर न होता हो, लेकिन भाजपा यहां भी अपने कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारने की तैयारी में है। पार्टी स्पष्ट कर चुकी है कि वह उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न नहीं देगी, लेकिन जीतने वाले कार्यकर्ता को पार्टी का संरक्षण अवश्य मिलेगा। इससे उन क्षेत्रों में ग्राम प्रधान भाजपा के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित होंगे। पार्टी का मानना है कि विधानसभा चुनावों में ग्राम प्रधान मतदाताओं को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

 


नई पीढ़ी को राजनीति में उतारने की तैयारी


भाजपा पंचायत चुनाव को नेतृत्व निर्माण का अवसर भी मान रही है। पार्टी का इरादा है कि क्षेत्र पंचायत सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में युवाओं और महिलाओं को मौका दिया जाए, ताकि भविष्य में वे विधायक और सांसद पद के लिए तैयार हो सकें। यह रणनीति भाजपा को जमीनी स्तर पर और मजबूती देने वाली मानी जा रही है।


सहयोगी दलों की दूरी बढ़ाएगी संकट


भाजपा की इस व्यापक रणनीति के बीच एनडीए के सहयोगी दलों—सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस)—ने पंचायत चुनाव में अकेले उतरने की घोषणा कर दी है। विश्लेषकों का मानना है कि पूर्वांचल में ये दल भाजपा के लिए बड़ी ताकत रहे हैं, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद का खासा प्रभाव है। ऐसे में इन सहयोगी दलों के स्वतंत्र उम्मीदवार भाजपा के परंपरागत वोट बैंक—कुर्मी, राजभर, बिंद, निषाद, कश्यप और जाट मतदाताओं—में सेंध लगा सकते हैं।


वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका मजबूत जमीनी संगठन है। लेकिन गठबंधन टूटने से नुकसान तय है। ऐसे में संभावना है कि भाजपा सीटों के बंटवारे को लेकर फिर से समझौते की कोशिश करे।


सीधे चुनाव हुए तो भाजपा को झटका लग सकता है


पंचायत चुनाव में ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव को लेकर एक और मुद्दा गर्म है—क्या यह चुनाव सीधे जनता से कराया जाएगा? पंचायत राज मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने इस संबंध में केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है और भाजपा के राज्यसभा सांसद अमरपाल मौर्य ने संसद में भी इस मांग को दोहराया है।


राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर ये चुनाव सीधे कराए जाते हैं और सहयोगी दल भाजपा के खिलाफ मैदान में आते हैं, तो भाजपा के लिए स्थिति गंभीर हो सकती है। ऐसे में पार्टी को सीटों के बंटवारे का सहारा लेना पड़ेगा। भाजपा के भीतर वर्षों से चर्चा रही है कि इन पदों के लिए सीधे चुनाव होने चाहिए। इससे भ्रष्टाचार पर भी रोक लगेगी, लेकिन इसका राजनीतिक नुकसान भाजपा को झेलना पड़ सकता है।

 


2021 में हार के अनुभव से ले रही सीख


गौरतलब है कि 2021 के पंचायत चुनाव में जब ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के लिए मतदान हुआ था, तब भाजपा को खासा नुकसान झेलना पड़ा था। जिला पंचायत सदस्य के 3050 वार्डों में से भाजपा केवल 543 सीटों पर जीत सकी थी। जबकि सपा को 699 और बसपा को 357 सीटें मिली थीं। हालांकि बाद में ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में समीकरण बदल गए और भाजपा ने गठजोड़ कर जीत दर्ज की।


राजनीतिक परिवारों की नई पीढ़ी भी तैयार


राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस चुनाव के जरिए भाजपा और सपा के कई वरिष्ठ नेताओं के परिजन राजनीति में कदम रख सकते हैं। पिछली बार भी तत्कालीन ग्राम्य विकास मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही और पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह जैसे नेताओं के परिजन पंचायत पदों पर चुनकर आए थे।


इस बार भी ऐसे कई सांसदों, विधायकों और मंत्रियों की निगाहें पंचायत चुनाव पर टिकी हैं, ताकि वे अपने बेटे-बेटियों को राजनीति में उतार सकें। कुल मिलाकर भाजपा इस चुनाव को केवल स्थानीय निकाय चुनाव नहीं बल्कि भविष्य की राजनीतिक जमीन तैयार करने वाले युद्ध के रूप में देख रही है।

इसे भी पढ़ें

Latest News