हाथरस। 2 जुलाई 2024 को हुए हाथरस भगदड़ कांड की न्यायिक जांच रिपोर्ट को विधानसभा में पेश की गई। इस हादसे में 123 लोगों की मौत हुई थी, और अब 1,669 पन्नों की इस रिपोर्ट में पुलिस प्रशासन की लापरवाही उजागर की गई है। रिपोर्ट में भगदड़ के पीछे साजिश से इनकार नहीं किया गया है और अलग से एसआईटी (SIT) जांच कराए जाने की सिफारिश की गई है।
जांच आयोग ने पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पुलिस को निष्क्रिय और लापरवाह करार देते हुए यह बताया गया कि भगदड़ के दौरान वे मूकदर्शक बने रहे और हालात को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
जांच आयोग में कौन-कौन शामिल था?
इस घटना की जांच के लिए राज्य सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस बृजेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। आयोग में रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी भवेश कुमार सिंह और रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हेमंत राव को सदस्य के रूप में शामिल किया गया था। जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट 30 दिसंबर 2024 को सरकार को सौंप दी थी, जिसे अब विधानसभा में पेश किया गया।
बिना जांच के जारी कर दी गई अनुमति
रिपोर्ट के अनुसार, कार्यक्रम के आयोजक देव प्रकाश मधुकर ने एसडीएम से अनुमति मांगी थी, जिसमें 80,000 लोगों के आने का अनुमान लगाया गया था। यह अनुमति 18 जून को मांगी गई, जिसे तेजी से स्वीकृत कर 19 जून को जारी कर दिया गया।
लेकिन अनुमति देने से पहले किसी भी अधिकारी ने सत्संग स्थल का निरीक्षण तक नहीं किया। रिपोर्ट में कहा गया कि एसडीएम, सीओ, इंस्पेक्टर और चौकी प्रभारी ने बिना जांच-पड़ताल किए अनुमति प्रदान कर दी। न ही आवेदन के साथ संलग्न कागजातों की समीक्षा की गई और न ही आयोजकों से कोई पूछताछ की गई।
अनुमान से कहीं अधिक थी भीड़
आवेदन में 80,000 लोगों के शामिल होने की बात कही गई थी, लेकिन रिपोर्ट में यह संख्या ढाई से तीन लाख तक बताई गई। आयोजकों ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उचित इंतजाम नहीं किए थे, जिससे भगदड़ की स्थिति बनी।
अंधविश्वास को बढ़ावा देने का आरोप
जांच रिपोर्ट में सत्संग स्थल पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने का भी उल्लेख किया गया। इसमें कहा गया कि सत्संग के दौरान यह दावा किया जा रहा था कि भोले बाबा के दर्शन और उनके चरणरज (पांव की धूल) लेने से भूत-प्रेत बाधाएं और बीमारियां दूर हो जाएंगी।
आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि अंधविश्वास और अज्ञानता को रोकने के लिए कानून बनाया जाए, ताकि इस तरह की घटनाओं से बचा जा सके।
पुलिस ने सारी व्यवस्था आयोजकों पर छोड़ी
रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि सत्संग में आई भारी भीड़ की सुरक्षा, ट्रैफिक नियंत्रण और अन्य व्यवस्थाओं की पूरी जिम्मेदारी आयोजकों और उनके सेवादारों पर छोड़ दी गई थी।
पुलिस प्रशासन ने आयोजन स्थल पर मौजूद होने के बावजूद कोई दखल नहीं दिया। यहां तक कि पुलिस ने खुद व्यवस्था संभालने के बजाय आयोजकों की बातों पर भरोसा कर लिया और घटनास्थल पर निष्क्रिय बनी रही।
कैसे हुई भगदड़?
जांच रिपोर्ट के मुताबिक, भगदड़ का मुख्य कारण ‘चरणरज’ लेने की घोषणा को बताया गया। जैसे ही मंच से यह घोषणा की गई कि भोले बाबा के चरणरज से सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी, भारी भीड़ दौड़ पड़ी, जिससे भगदड़ मच गई।
हालांकि, भोले बाबा सूरजपाल सिंह और कई श्रद्धालुओं ने चरणरज जैसी किसी परंपरा से इनकार किया है, लेकिन मृतकों के परिजनों और अन्य श्रद्धालुओं ने बताया कि ऐसी प्रथा पहले से प्रचलित थी।
अव्यवस्थित भीड़ नियंत्रण बना हादसे की वजह
सत्संग समाप्त होते ही हजारों श्रद्धालु अपने वाहनों की ओर जाने लगे। इसी दौरान सेवादारों ने भोले बाबा के निकलने के लिए मानव श्रृंखला बनाई, जिससे लोगों का रास्ता रुक गया।
हाईवे पर बनी इस भीड़ को सेवादारों ने धक्का-मुक्की करके पीछे किया, जिससे अचानक अधिक दबाव बन गया। बाबा के जाते ही सेवादारों ने भीड़ को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी छोड़ दी, जिससे लोग अचानक हाईवे की ओर दौड़ पड़े और भगदड़ मच गई।
इस दौरान हाईवे पर पानी गिरा हुआ था, जिससे सड़क फिसलन भरी हो गई। कुछ श्रद्धालु सड़क के दूसरी ओर बने ढलान पर गिर गए और भारी भीड़ के नीचे कुचले गए।
बुनियादी सुविधाओं की कमी ने बढ़ाई मुश्किलें
रिपोर्ट में बताया गया कि आयोजन स्थल पर पर्याप्त पंडाल की व्यवस्था नहीं थी, जिससे लोग दूर-दूर तक फैल गए। गर्मी और उमस ज्यादा थी, लेकिन पंखों की व्यवस्था केवल मंच पर थी। पीने के पानी की उचित व्यवस्था नहीं थी। हजारों लोग घंटों तक गर्मी और घुटन सहते रहे, जिससे भगदड़ की स्थिति बनी।
गलत ट्रैफिक प्रबंधन ने स्थिति और बिगाड़ी
रिपोर्ट के अनुसार, भोले बाबा के वाहन को गलत दिशा में हाईवे से निकालने की व्यवस्था की गई, जबकि सत्संग स्थल का गेट नंबर 2 वहीं था, जहां से सभी श्रद्धालु आ-जा रहे थे। जब भीड़ को एक साथ छोड़ा गया, तो हाईवे पर ट्रैफिक अवरुद्ध हो गया और भगदड़ मच गई।
पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता
जांच आयोग ने स्पष्ट किया कि पुलिस और प्रशासन को आयोजन स्थल पर मौजूद रहना चाहिए था, लेकिन उन्होंने अपनी जिम्मेदारी आयोजकों पर छोड़ दी।
रिपोर्ट में कहा गया कि भीड़ प्रबंधन के लिए पुलिस ने कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई। उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों और अन्य राज्यों से आए आयोजकों, सेवादारों और कमांडरों की जानकारी पुलिस को नहीं थी। इन लोगों के बैकग्राउंड की जांच-पड़ताल तक नहीं की गई।
आयोग ने क्या सिफारिशें दीं?
आयोजन स्थल का भौतिक निरीक्षण किए बिना अनुमति न दी जाए। धार्मिक आयोजनों में भीड़ नियंत्रण की जिम्मेदारी आयोजकों के साथ-साथ प्रशासन की भी होनी चाहिए। अंधविश्वास फैलाने वाले आयोजनों पर रोक लगाई जाए। ऐसे आयोजनों में पुलिस को सक्रिय भूमिका निभानी होगी, न कि मूकदर्शक बनकर खड़े रहना।