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काशी के महाश्मशान पर धधकती चिताओं के बीच खेली गई चिता भस्म की होली, डमरुओं की नाद पर थिरके नागा, दुनिया का सबसे अनोखा आयोजन

डमरुओं की डम, डम, हर-हर बम-बम का नाद, दूसरी ओर महाश्मशानपर नागा साधुओं का शिव तांडव, समूची दुनिया में इकलौता दृश्य जिसे देख सभी की आंखें थम जाएं।


आध्यात्म, साहित्य, संस्कृति और परम्पराओं के शहर काशी में मणिकर्णिका घाट पर एक ओर जहां चिताओं का संगम देखा जा रहा था, वहीं दूसरी ओर शिवगण चिता भस्म की होली से पूरे वातावरण को शिवमय कर रहे थे। दृश्य ऐसा था मानो साक्षात् कैलाश पर्वत से शिव काशीवासियों संग आनंदित होने उतर आए हों। इस अलौकिक दृश्य को अपनी अंतरआत्मा में उतार कर शिवोहम में श्रद्धालु मगन हो गए।

 


वाराणसी। भूतभावन बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट ही वह स्थान है, जहां मृत्यु भी उत्सव है, मंगलवार को इस परिकल्पना को साकार किया गया। एक ओर जहां दुःख व अपनों से बिछड़ने का संताप लोगों को सता रहा था। वहीं दूसरी ओर इसी महाशमशान पर शहनाई की मंगलध्वनी गूंज उठी। 

 


परम्परा के अनुसार, आयोजक गुलशन कपूर ने बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली (शिव शक्ति) की मध्याह्न आरती कर बाबा को जया, विजया,मिष्ठान, व सोमरस का भोग लगाया। बाबा व माता को चिता भस्म व नीला गुलाल अर्पित किया। होली योगेश्वर श्री कृष्ण और राधा का भी प्रिय त्योहार है और ‘हर’ का उत्सव बिना हरी के कैसे संभव? इस कारण इस वर्ष हर और हरी दोनों के लिए भस्म के साथ नीला गुलाल, माता मशान काली का लाल गुलाल चढ़ा कर होली का शुभारंभ किया गया। 

 


इस दौरान पूरा मंदिर प्रांगण और शवदाह स्थल भस्म से भर गया। इस उत्सव में इस वर्ष विशेष रूप से जगत गुरु सतुवा बाबा संतोष दास महाराज, अघोर पीठाधीश्वरर कपाली बाबा जी महराज, गुलशन कपूर (मन्दिर व्यवस्थापक), चैनू प्रसाद गुप्ता (अध्यक्ष), विजय शंकर पांडेय, अंकित झीगरन, राजू पाठक, दिलीप यादव, बिहारी लाल गुप्ता, सोनू कपूर, संजय गुप्ता, मनोज शर्मा, दीपक तिवारी, विवेक चौरसिया, अजय गुप्ता, करन जायसवाल, सुबोध वर्मा समेत हजारों भक्त शामिल हुए।

 


क्या है मान्यता?


काशी में रंगभरी एकादशी के अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर चिता और भस्म की होली खेली जाती है। दुनिया के इस अनोखे आयोजन में देश विदेश से श्रद्धालु उमड़ते हैं। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं, जिसे उत्सव के रूप में काशीवाशी मनाते है और रंग का त्योहार होली का प्रारम्भा माना जाता है। इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं, जैसे देवी, देवता, यक्ष, गन्धर्व, मनुष्य और जो शामिल नहीं होते हैं, वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच,किन्नर, दृश्य, अदृश्य, शक्तियाँ। जिन्हें बाबा ने स्वयं आम जन मानस के बीच जाने से रोक रखा है। 

 


लेकिन बाबा तो बाबा हैं वो कैसे अपनों की खुशियों का ध्यान नहीं देते। अंत में सबका बेड़ा पार लगाने वाले शिवशंकर उन सभी के साथ चिता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और आज से ही सम्पूर्ण विश्व को प्रंश्नता, हर्ष-उल्लास देने वाले इस त्योहार होली का आरम्भ होता हैं जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।

 


चूंकि इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता है जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं। इस अद्भुत, अद्वितीय, अकल्पनीय होली को देखकर, खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के शाश्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्म शांत करते हैं। 

 

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